Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 61
________________ 55 4 - पुष्पदन्त और भूतबलि और उनका ग्रंथ षट्खण्डागम ( लगभग ईस्वी सन् की पांचवीं शती) पुष्पदन्त और भूतबलि षट्खण्डागम के रचियता हैं । इनके उल्लेख नंदीसंघ की प्राकृत पट्टावली के अतिरिक्त कुछ अन्य पट्टावलियों और अभिलेखों में भी मिलते हैं। हरिवंशपुराण की सूची में इनका उल्लेख नहीं है । प्राप्त उल्लेखों में भी कालक्रम और गुरु परंपरा की दृष्टि से इतनी विसंगतियाँ हैं कि इन दोनों को गुरु परंपरा का और इनके काल का निर्णय करना कठिन हो जाता है । धवला और जयधवला में यद्यपि पुष्पदन्त और भूतबलि के उल्लेख हैं, किन्तु वे भी उनकी गुरु परंपरा और गण आदि के संबंध में वे स्पष्टतया मौन हैं। धरसेन तो उनके विद्यागुरु ही सिद्ध होते हैं, उनके दीक्षा गुरु कौन थे, वे किस परंपरा और अन्वय के थे, इस संबंध में हमें धवला, जयधवला और नंदीसंघ की प्राकृत पट्टावली से भी कोई सूचना नहीं मिलती है । पुष्पदंत और भूतबलि का काल भूतबलि और पुष्पदंत को कुंदकुंद की परंपरा से सम्बद्ध बताने के लिए, सिद्धरवसति का ई. सन् 1398 का जो अभिलेख उपलब्ध होता है, वह भी इतनी अधिक विसंगतियों से भरा हुआ है कि उसकी विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है । उपलब्ध दिगम्बर पट्टावलियों की मुख्य कमी यह है कि वे कल्पसूत्र स्थविरावली के समान अविच्छिन्न गुरु परंपरा की सूचक नहीं हैं । उनमें गुरु या आचार्य परंपरा के स्थान पर नन्दीसूत्र की वाचक वंश स्थविरांवली के समान प्रसिद्ध- प्रसिद्ध आचार्यों के नामों का संकलन मात्र है। इस संकलन में भी विभिन्न पट्टावलियों में परस्पर असंगतियाँ पाई जाती है । पुनः, नामों के इस संकलन में कालक्रम और गुरु परंपरा का कोई ध्यान नहीं रखा गया है | जहाँ सिद्धरवसति के अभिलेख' के पुष्पदन्त और भूतबलि को अर्हत्बलि का साक्षात् शिष्य दिखाया गया है, वहीं नंदीसंघ पट्टावलि में उनके बीच माघनन्दी और धरसेन का उल्लेख है । इसी प्रकार, उक्त अभिलेख में माघनन्दी पुष्पदन्त और भूतबलि के शिष्य नेमिचन्द्र के शिष्य हैं, वहीं नंदीसंघ की पट्टावली में वे धरसेन के गुरु हैं । जहाँ एक अन्य पट्टावली' में कुन्दकुन्द को माघनन्दी का प्रशिष्य और जिनचन्द्र का शिष्य कहा गया है, वहीं उक्त अभिलेख में माघनन्दी को कुन्दकुन्द की शिष्य परंपरा में उनसे 10वें स्थान पर बताया गया है। सिद्धरवसति के 14वीं शती के अभिलेख में पुष्पदन्त और भूतबलि की जो गुरु परंपरा दी है, उसमें तो कालक्रम के विवेक का भी पूर्ण अभाव परिलक्षित होता है । उसमें आचार्यों का क्रम इस प्रकार है -

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