Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 121
________________ 115 का प्रभाव सिद्ध करें या फिर धूर्ताख्यान के मूलस्रोत कोअन्य किसी पूर्ववर्ती रचना या लोक-परम्परा में खोजें। यह तोस्पष्ट है कि धूर्ताख्यान चाहेवह निशीथचूर्णि का होया हरिभद्र का, स्पष्ट ही पौराणिक युग के पूर्व की रचना नहीं है। क्योंकि वेदोनों ही सामान्यतया श्रुति, पुराण, भारत (महाभारत) और रामायण का उल्लेख करतेहैं। हरिभद्र नेतोएक स्थान पर विष्णुपुराण, महाभारत के अरण्यपर्व और अर्थशास्त्र का भी उल्लेख किया है, अतः निश्चित ही यह आख्यान इनकी रचना के बाद ही रचा गया होगा। उपलब्ध आगमों में अनुयोगद्वार महाभारत और रामायण का उल्लेख करता है। अनुयोगद्वार की विषयवस्तु के अवलोकन सेऐसा लगता है कि अपनेअंतिम रूप में वह लगभग पांचवीं शती की रचना है। धूर्ताख्यान में भारत' नाम आता है, 'महाभारत' नहीं। अतः इतना निश्चित है कि धूर्ताख्यान के कथानक के आद्यस्रोत की पूर्व सीमा ईसा की चौथी या पांचवीं शती सेआगेनहीं जा सकती। पुनः निशीथभाष्य और निशीथचूर्णी मेंउल्लेख होनेसेधूर्ताख्यान के आद्यस्रोत की अपर-अंतिम सीमा छठीसातवीं शती के पश्चात् नहीं होसकती। इन ग्रंथों का रचनाकाल ईसा की सातवीं शती का उत्तरार्ध होसकता है। अतः धूर्ताख्यान का आद्यस्रोत ईसा की पांचवीं सेसातवीं शती के बीच का है। यद्यपि प्रमाणाभाव में निश्चितरूपसेकुछ कहना कठिन है, किंतु एक कल्पना यह भी की जा सकती है कि हरिभद्र की गुरु-परम्परा जिनभद्र और जिनदास की हो, आगेकहीं भ्रांतिवश जिनभद्र का जिनभट और जिनदास का जिनदत्त होगया हो, क्योंकि 'ई' और 'दृ' के लेखन में और 'त' और 'स' के लेखन में हस्तप्रतों में बहुत ही कम अंतर रहता है। पुनः हरिभद्र जैसेप्रतिभाशाली शिष्य का गुरु भी प्रतिभाशाली होना चाहिए, जबकि हरिभद्र के पूर्व जिनभट्ट और जिनदत्त के होनेके अन्यत्र कोई संकेत नहीं मिलतेहैं। होसकता है कि धूर्ताख्यान हरिभद्र की युवावस्था की रचना होऔर उसका उपयोग उनके गुरुबंधु सिद्धसेन क्षमाश्रमण (छठी शती) नेअपनेनिशीथभाष्य में तथा उनके गुरु जिनदासगणि महत्तर नेनिशीथचूर्णि में किया हो। धूर्ताख्यान कोदेखनेसेस्पष्ट रूप सेयह लगता है कि यह हरिभद्र के युवाकाल की रचना है, क्योंकि उसमें उनकी जोव्यंग्यात्मक शैली है, वह उनके परवर्ती ग्रंथों में नहीं पाई जाती। हरिभद्र जिनभद्र एवं जिनदास की परम्परा में हुए हो, यह मात्र मेरी कल्पना नहीं है। डॉ. हर्मन जैकोबी और अन्य कुछ विद्वानों नेभी हरिभद्र के गुरु का नाम जिनभद्र माना है। यद्यपि मुनि श्री जिनविजयी नेइसेउनकी भ्रांति ही माना है। वास्तविकता जोभी

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