Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 186
________________ 180 16. दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपपन्नपर्यंन्ताः। - तत्त्वार्थसूत्र, विवेचक-पं. फूलचन्द्र शास्त्री, 4/3, पृ. 118 देखें - 4/19 में 16 कल्पों का निर्देश है। 17. वारस कप्पा केई केई सोलस वदंति आइरिया ॥115।। सोहम्मीसाणसणक्कुमारमाहिंदबम्हलंतवया। महसुक्कसहस्सारा आणदपाणदयआरणच्चुदया।120।। - तिलोयपण्णत्ती, आठवाँ अधिकार 19. ततो हि गत्वा श्रमणार्जिकानां समीपभ्येत्य कृतोपचाराः। विविक्तदेशे विगतानुरागाजहुर्वराङ्गयो वरभूषणानि॥93।। गुणाश्चशीलानि तपांसिचैवप्रबुद्धतत्त्वाः सितशुभ्रवस्त्राः। संगृह्य सम्यग्वरभूषणानि जिनेन्द्रमार्गाभिरता बभूकः॥94।। -वरांगचरित- 29/93-94 20. आवसधेवाअप्पाउग्गेजोवा महढ्ढिओ हिरिमं। मिच्छजणेसजणेवा तस्स होज्जअववादियं लिंगं॥78॥ आगे इसकी टीका देखें - ‘अपवादिकलिंगसचेललिंग' - भगवती आराधना, भाग 1, अपराजित टीका, पृ. 114 21. हेमन्तकाले धृतिबद्धकक्षा दिगम्बरा ह्यभ्रवकाशयोगाः। - वरांगचरित- 30/32 4. .... कृतकेशलोचः।- वही 302 22. विशीर्णवस्त्रावृतगात्रयष्टयस्ताः काष्ठमात्रप्रतिमा बभूवुः। - वरांगचरित- 31/13 23. (अ) इत्थीसुण पावयाभणिया। (ब) दंसणणाणचरित्ते महिलावग्गम्मि देहि वीसट्ठो। पासत्थ विहु णियट्ठोभावविणट्टोण सो समणो॥ -लिंगपाहुड 20 24. (अ) नरेन्द्रपन्य : श्रुतिशीलभूषा... प्रतिपन्नदीक्षास्तदा बभूवुः परिपूर्णकामा ः॥31/1॥दीक्षाधिराज्यश्रियमभ्युपेता... ॥31/2// (ब) नरवरवनिता विमुच्यसाध्वीशमुपययुः स्वपुराणिभूमिपालाः॥29/99// (स) व्रतानिशीलान्यमृतोपमानि... ।।31/4।। (द) महेन्द्रपत्न्यः श्रमणत्वमाप्य... ॥31/113।।-वरांगचरित

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