Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 193
________________ 187 कल की दृष्टि से स्वयंभू 7वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 8वीं शतीं के पूर्वार्द्ध के कवि है।' यह स्पष्ट है कि इस काल में यापनीय संघ दक्षिण में न केवल प्रवेश कर चुका था, अपितु वहाँ प्रभावशाली भी बन गया था । अतः काल की दृष्टि से भी स्वयंभू को यापनीय परंपरा से संबंधित मानने में कोई बाधा नहीं आती है । साहित्यिक प्रमाण की दृष्टि से पुष्पदन्त के महापुराण की टीका में स्वयंभू को स्पष्ट रूप से यापनीय (आपुली) बताया गया है। उसमें लिखा है - 'स्वयंभू पत्यड़िबद्ध कर्ता आपली संघीयः' इस कथन से यह निष्कर्ष निकलता है कि वे यापनीय संघ से संबंधित थे । ' स्वयंभू के यापनीय संघ से संबंध होने के लिए प्रो. भयाणी ने एक और महत्वपूर्ण प्रमाण यह दिया है कि यापनीय संघ वैचारिक दृष्टि से उदार और समन्वयवादी था । यह धार्मिक उदारता और समन्वयशीलता स्वयंभू के ग्रंथों में विभिन्न स्थलों पर पाई जाती है। 'रिट्ठनेमिचरिउ' संधि 55 / 30 और 'पउमचरिउ' संधि 43/19 में उनकी यह उदारता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उनकी उदारता को सूचित करने के लिए हम यहाँ केवल एक ही गाथा दे रहे हैं - अरहन्तु बुद्ध तुहुँ हरिहरन व, तुहुँ अण्णाण तमोहरिउ । तुहुँ सुहुंमु णिरन्जणु परमपउ, तुहुँ रविदम्भु सयम्भु सिउ ॥ दिगम्बर परंपरा धार्मिक दृष्टि से श्वेताम्बरों और यापनीयों की अपेक्षा अनुदार रही है, क्योंकि वह अन्यतैर्थिक मुक्ति को अस्वीकार करती है, जबकि श्वेताम्बर और यापनीय अन्यतैर्थिक की मुक्ति को स्वीकार करते हैं। स्वयंभू की इस धार्मिक उदारता की विस्तृत चर्चा प्रो. भयाणीजी ने पउमचरिउ की भूमिका में की है। पाठक उसे वहाँ देख सकते हैं।' डॉ. किरण सिपानी ने भी अपनी कृति में इस उदारता का उल्लेख किया है। स्वयम्भू की रामकथा और उसका मूलस्त्रोत महाकवि स्वयम्भू के पउमचरिउ का अपभ्रंश साहित्य में वही स्थान है, जो हिन्दी साहित्य में तुलसी की रामकथा का है । पउमचरिउ अपभ्रंश में रचित जैन रामकथा का महत्वपूर्ण ग्रंथ है । यह विमलसूरि के पउमचरियं और रविषेण के 'पद्मचरितं ' पर आधारित है। यह 5 काण्डों और 90 संधियों में विभाजित है । इसके विद्याधरकाण्ड में 20 संधियाँ, अयोध्याकाण्ड में 22 संधियाँ, सुंदरकाण्ड में 14 संधियाँ, युद्धकाण्ड में 21 संधियाँ और उत्तरकाण्ड में 13 संधियाँ हैं। इसकी इन 90 संधियों में 82 संधियों की रचना स्वयं स्वयंभू ने की थी। अंतिम 7 संधियों की रचना

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