Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 222
________________ 216 और 35. अपनी इंद्रियों कोवश में रखनेवाला व्यक्ति ही गृहस्थ धर्म के पालन करने योग्य है । 14 वस्तुतः इस समग्र चर्चा में आचार्य हेमचंद्र नेएक योग्य नागरिक के सारे कर्त्तव्यों और दायित्वों का संकेत कर दिया है और इस प्रकार ऐसी जीवनशैली का निर्देश किया है जिसके आधार पर सामंजस्य और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है। इससेयह भी फलित होता है कि आचार्य हेमचंद्र सामाजिक और पारिवारिक जीवन की उपेक्षा करके नहीं चलते, वरन् वे उसेइतना ही महत्त्व देते हैं जितना आवश्यक है और वेयह भी मानते हैं कि धार्मिक होनेके लिए एक अच्छा नागरिक होना आवश्यक है । हेमचंद्र की साहित्य साधना 15 मचंद्र गुजरात की ओर भारतीय संस्कृति कोजोमहत्त्वपूर्ण अवदान दिया है, वह मुख्यरूप से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के कारण ही है। इन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के बल पर ही विविध विद्याओं में ग्रंथ की रचना की। जहां एक ओर उन्होंने अभिधान-चिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघंटुकोष और देशीनाममाला जैसेशब्दकोषों की रचना की, वहीं दूसरी ओर सिद्धहेम - शब्दानुशासनलिंगानुशासन, धातुपारायण जैसेव्याकरण ग्रंथ भी रचे । कोश और व्याकरण ग्रंथों के अतिरिक्त हेमचंद्र नेकाव्यानुशासन जैसेअलंकार ग्रंथ और छन्दोनुशासन जैसेछन्दशास्त्र के ग्रंथ की रचना भी की । विशेषता यह है कि इन सैद्धांतिक ग्रंथों में उन्होंनेसंस्कृत भाषा के साथ-साथ प्राकृत और अपभ्रंश के उपेक्षित व्याकरण की भी चर्चा की। इन सिद्धांतों के प्रायोगिक पक्ष के लिए उन्होंने संस्कृत-प्राकृत में द्वयाश्रय जैसेमहाकाव्य की रचना की है। हेमचंद्र मात्र साहित्य के ही विद्वान नहीं थे, अपितु धर्म और दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी गति निर्बाध थी । दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और प्रमाणमीमांसा जैसे प्रौढ़ ग्रंथ रचेतोधर्म के क्षेत्र में योगशास्त्र जैसेसाधनाप्रधान ग्रंथ की भी रचना की। कथा साहित्य में उनके द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का अपना विशिष्ट महत्त्व है। हेमचंद्र नेसाहित्य, काव्य, धर्म और दर्शन जिस किसी विधा को अपनाया, उसेएक पूर्णता प्रदान की। उनकी इस विपुल साहित्यसर्जना का ही परिणाम था कि उन्हें कलिकालसर्वज्ञ की उपाधि प्रदान की गई।

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