Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 213
________________ 207 भगवतः स्तुतिमेवमाहश्री वीरमृतं ज्योतिनंत्वाऽऽदिसर्ववेदसाम्। -नंदीसूत्र, मलयगिरि टीका, पृ.23 10. देखें-ललितविस्तरा (हरिभद्र), प्रकाशक ऋषभदेवकेशरीमलश्वेताम्बर संस्था, रतलाम,पृ. 57. ज्ञातव्य है कियापनीयतंत्र नामक मूलग्रंथ प्राकृतभाषामें निबद्धथा, वर्तमान में यह ग्रंथअनुपलब्ध है। 11. देखें - सूत्राण्यधीते, नियुक्तीरधीते, - भाष्याण्यधीते...। -शाकटायनव्याकरणम्, अमोघवृत्ति-4/4/140 और भी देखें 1/2/203-204. 12. जैन साहित्य और इतिहास, पं. नाथूरामजीप्रेमी, पृ. 158. 13. उपसर्वगुप्तंव्याख्यातार: - शाकटायनव्याकरणम् अमोघवृत्ति 1/3/104. 14. देखें - शाकटायन व्याकरणम्, सं.- पं.शंभुनाथ त्रिपाठी, Introduction Page 17 एवं जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 159. 15. नन्दीसूत्र, मलयगिरिटीका, पृ. 23. 16. जैन साहित्य और इतिहास, पं. नाथूरामजीप्रेमी, पृ. 161. 17. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, लेख क्रमांक 124. 18. जैन साहित्य और इतिहास,पं. नाथूरामजीप्रेमी, पृ. 167. 19. जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 207 20. जैन शिलालेखसंग्रह, भाग 2, लेख क्रमांक 160. 21. ये दोनों ग्रंथशाकटायन व्याकरणम्, सम्पादक-पं.शम्भूनाथ त्रिपाठी, प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, मूर्तिदेवी ग्रंथमालाग्रंथांक 39, के अंतर्गत परिशिष्ट के रूप में ग्रंथ कीभूमिका के पश्चात् छपे हैं। 22. वस्त्र बिना न चरणंस्त्रीणामित्यईतोच्यते, विनाऽपि। पुंसामितिन्वयार्यत, तत्र स्थविरादिवद् मुक्तिः॥ . . अज॑र्भगन्दरादिषुगृहीतचीरो यतिन मुच्यते। उपसर्गे वाचीरेग्गदादिः संन्यस्यते चात्ते।। - स्त्रीमुक्ति प्रकरण, कारिका, 16-17.

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