Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 194
________________ 188 उनके पुत्र त्रिभुवन ने कीथी। 83वीं संधिआंशिक रूप से दोनों की संयुक्त रचना प्रतीत होती है। ज्ञातव्य है कि स्वयंभू ने राम और कृष्ण- दोनों ही महापुरुषों के चरित्रों को लेकर अपभ्रंश भाषा में अपनी रचनाएँ कीं। उन्होंने जहाँ रिट्टनेमिचरिउ अपरनाम हरिवंशपुराण में 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के साथ-साथ कृष्ण तथा कौरव-पाण्डव की कथा का विवेचन किया है, वहीं पउमचरिउ में रामकथा का। उनकी रामकथा का आधार विमलसूरि का पउमचरियं रहा है। जैन रामकथा में पउमचरियं का वहीं स्थान है, जो हिन्दू रामकथा में वाल्मीकि रामायण का है। वस्तुतः, रामकथा साहित्य में वाल्मिकी की रामायण के पश्चात् यदि कोई ग्रंथ है, तो वह विमलसूरि का पउमचरियं (ईसा की दूसरी, तीसरी शती) है। जैनों ने राम (पद्म) को अपने 63 शलाका पुरुषों में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है। जैनों में रामकथा की दो धाराएँ प्रचलित रही हैं, एक धारा गुणभद्र के उत्तरपुराण की है, जिसका मूलस्त्रोत संघदासगणि की वसुदेवहिण्डी में मिलता है, तो दूसरी धारा का आधार विमलसूरि का पउमचरियं है। जैन आचार्यों ने जिन-जिन भाषाओं को अपनी रचनाओं का आधार बनाया, प्रायः उन सभी में रामकथा पर ग्रंथ लिखे गये। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, कन्नड़, मरुगुर्जर और हिन्दीइन सभी भाषाओं में हमें जैन रामकथा से संबंधित ग्रंथ उपलब्ध होते हैं। रामकथा को लेकर सर्वप्रथम विमलसूरि ने प्राकृत में पउमचरियं की रचना की थी। उसी पउमचरियं कोही आधार बनाकर रविषेण ने संस्कृतभाषा में पद्मपुराण यापद्मचरित की रचना की। वस्तुतः, रविषेण का पद्मपुराण विमलसूरि के पउमचरियं का संस्कृत रूपान्तरण ही कहा जा सकता है। पुनः, स्वयंभूने विमलसूरि के पउमचरियं और रविषेण के पद्मपुराण के आधार पर ही अपभ्रंशभाषा में अपने पउमचरिउ की रचना की। ____डॉ. किरण सिपानी ने अपनी कृति पउमचरिउ का काव्यशास्त्रीय अध्ययन' में लिखा है कि जैनों के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में केवल विमलसूरि की (रामकथा प्रचलित है), परन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में विमलसूरि एवं गुणभद्र- दोनों की परंपराओं का अनुसरण किया गया है। मेरी दृष्टि में उनके इस कथन में संशोधन की अपेक्षा है। श्वेताम्बर परंपरा में भी हमें रामकथा की दोनों धाराओं के संकेत मिलते हैं। उसमें संघदासगणि की वसुदेवहिण्डी में रामकथा की उस धारा का मूलस्त्रोत निहित है, जिसे गुणभद्र ने अपने उत्तरपुराण में लिखा है। पुनः, डॉ. सिपानी का यह कथन तो ठीक है कि दिगम्बरपरंपरा में विमलसूरि और गुणभद्र- दोनों ही कथाधाराएँ प्रचलित रही हैं, किन्तु इस संबंध में भी एक संशोधन अपेक्षित है। वस्तुतः, निर्ग्रन्थ संघ की अचेल

Loading...

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228