Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 147
________________ 141 वेसवारी में घूमतेहैं, अकारण कटि वस्त्र बांधतेहैं और सारी रात निश्चेष्ट होकर सोतेरहतेहैं। न आते-जातेसमय प्रमार्जन करतेहैं, न अपनी उपाधि (सामग्री) का प्रति• लेखन करतेहैं और न स्वाध्याय ही करतेहैं। अनेषणीय पुष्प, फूल और पेय ग्रहण करतेहैं। भोज-समारोहों में जाकर सरस आहार ग्रहण करतेहैं। जिन-प्रतिमा का रक्षण एवं क्रय-विक्रय करतेहैं। उच्चाटन आदि कर्म करतेहैं। नित्य दिन में दोबार भोजन करतेहैं तथा लवंग, ताम्बूल और दूध आदि विकृतियों का सेवन करतेहैं। विपुल मात्रा में दुकूल आदि वस्त्र, बिस्तर, जूते, वाहन आदि रखतेहैं। स्त्रियों के समक्ष गीत गातेहैं। आर्यिकाओं के द्वारा लाई सामग्री लेतेहैं। लोक-प्रतिष्ठा के लिए मुण्डन करवातेहैं तथा मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण धारण करतेहैं। चैत्यों में निवास करतेहैं, (द्रव्य) पूजा आदि कार्य आरम्भ करवातेहैं, जिन-मंदिर बनवातेहैं, हिरण्य-सुवर्ण रखतेहैं, नीच कुलों कोद्रव्य देकर उनसेशिष्य ग्रहण करतेहैं। मृतक-कृत्य निमित्त जिन-पूजा करवातेहैं, मृतक के निमित्त जिन-दान (चढ़ावा) करवातेहैं। धन-प्राप्ति के लिए गृहस्थों के समक्ष अंग-सूत्र आदि का प्रवचन करतेहैं। अपनेहीनाचारी मृत गुरु के निमित्त नदिकर्म, बलिकर्म आदि करतेहैं। पाठ-महोत्सव रचातेहैं। व्याख्यान में महिलाओं सेअपना गुणगान करवातेहैं। यति केवल स्त्रियों के सम्मुख और आर्यिकाएं केवल पुरुषों के सम्मुख व्याख्यान करती हैं। इस प्रकार जिन-आज्ञा का अपलाप कर मात्र अपनी वासनाओं का पोषण करतेहैं। येव्याख्यान करके गृहस्थों सेधन की याचना करतेहैं। येतोज्ञान के भी विक्रेता हैं। ऐसेआर्यिकाओं के साथ रहनेऔर भोजन करनेवालेद्रव्य संग्राहक, उन्मार्ग के पक्षधर मिथ्यात्वपरायण न तोमुनि कहेजा सकतेहैं और न आचार्य ही।38 ऐसेलोगों का वंदन करनेसेन तोकीर्ति होती है और न निर्जराही, इसके विपरीत शरीर कोमात्र कष्ट और कर्मबंधन होता है।” . वस्तुतः जिस प्रकार गंदगी में गिरी हुई माला कोकोई भी धारण नहीं करता है, वैसेही येअपूज्य हैं। हरिभद्र ऐसेवेशधारियों कोफ्टकारतेहुए कहतेहैं- यदि महापूजनीय यति (मुनि) वेशधारण करके शुद्ध चरित्र का पालन तुम्हारेलिएशक्य नहीं है तोफिर गृहस्थ वेश क्यों नहीं धारण कर लेतेहो? अरे, गृहस्थवेश में कुछ प्रतिष्ठा तोमिलेगी, किंतु मुनि-वेश धारण करके यदि उसके अनुरूप आचरण नहीं करोगेतोउल्टे निंदा के ही पात्र बनोगे।" यह उन जैसेसाहसी आचार्य का कार्य होसकता है जोअपनेसहवर्गियों कोइतनेस्पष्ट रूप सेकुछ कह सके। जैसा कि मैंनेपूर्व

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