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585 को शक संवत् मान लिया जाए तोदोनों में संगति बैठ सकती है। पुनः हरिभद्र की कृतियों में नन्दीचूर्णि सेभी कुछ पाठ अवतरित हुए हैं। नन्दीचूर्णि के कर्ता जिनदासगणिमहत्तर नेउसका रचना कालशकसंवत् 598 बताया है। अतः हरिभद्र का सत्त-समय शक संवत् 598 तदनुसार ई. सन् 676 के बाद ही होसकता है। यदि हम हरिभद्र के काल सम्बंधी पूर्वोक्त गाथा के विक्रम संवत् कोशक संवत् मानकर उनका काल ईसा की सातवीं शताब्दी का उत्तरार्ध एवं आठवीं शताब्दी का पूर्वार्ध मानें तोनन्दीचूर्णि के अवतरणों की संगति बैठानेमें मात्र 20-25 वर्ष का ही अंतर रह जाता है। अतः इतना निश्चित है कि हरिभद्र का काल विक्रम की सातवीं /आठवीं अथवा ईस्वी सन्की आठवींशताब्दी ही सिद्ध होगा।
___ इससेहरिभद्र की कृतियों में उल्लिखित कुमारिल, भर्तृहरि, धर्मकीर्ति, वृद्धधर्मोत्तर आदि सेउनकी समकालिकता माननेमें भी कोई बाधा नहीं आती। हरिभद्र नेजिनभद्र और जिनदास के जोउल्लेख किए हैं और हरिभद्र की कृतियों में इनके जोअवतरण मिलतेहैं उनमें भी इस तिथि कोमाननेपर कोई बाधा नहीं आती। अतः विद्वानों कोजिनविजयजी के निर्णय कोमान्य करना होगा।
पुनः यदि हम यह मान लेतेहैं कि निशीथचूर्णि में उल्लिखित प्राकृत धूर्ताख्यान किसी पूर्वाचार्य की कृति थी और उसके आधार पर ही हरिभद्र नेअपनेप्राकृत धूर्ताख्यान की रचना की तोऐसी स्थिति में हरिभद्र के समय कोनिशीथचूर्णि के रचनाकाल ईस्वी सन् 676 सेआगेलाया जा सकता है। मुनि श्री जिनविजयजी नेअनेक आन्तर और बाह्य साक्ष्यों के आधार पर अपनेग्रंथ हरिभद्रसूरि का समय निर्णय' में हरिभद्र के समय कोई. सन् 700-770 स्थापित किया है। यदि पूर्वोक्त गाथा के अनुसार हरिभद्र का समय विक्रम सं. 585 मानतेहैं तोजिनविजयजी द्वारा निर्धारित समय और गाथोक्त समय में लगभग 200 वर्षों का अंतर रह जाता है। जोउचित नहीं लगता है। अतः इसेशक संवत् मानना उचित होगा। इसी क्रम में मुनि धनविजयजी ने चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धार' में रत्नसंचयप्रकरण' की निम्न गाथा का उल्लेख किया है
पणपण्णबारससए हरिभद्दोसूरि आसिपुव्वकाए।
इस गाथा के आधार पर हरिभद्र का समय वीरनिर्वाण संवत् 1255 अर्थात् वि.सं. 785 या ईस्वी सन् 728 आता है। इस गाथा में उनके स्वर्गवास का उल्लेख