Book Title: Jain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय 'जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश' नामक ग्रन्थका यह प्रथम खण्ड पाठकोंके समक्ष उपस्थित किया जा रहा है । इसमें प्राच्य विद्यामहार्णव प्राचार्यश्री जुगलकिशोरजी मुख्तारके उन लेखोंका संग्रह है, जो समय समय पर अनेकान्तादि पत्रोंमें और अनेक स्व-पर-सम्पादित ग्रंथों की प्रस्तावनामोंमें प्रगट होते रहे है । लेखोंकी संख्या इतनी अधिक है, कि यह संग्रह कई खण्डोंमें प्रकाशित करना होगा । इस प्रथम खण्डमें ही ७५० के लगभग पृष्ठ हो गये हैं । दूसरे खण्डोंमे भी प्राय: इतने इतने ही पृष्ठोंकी संभावना है । ___इतिहास-अनुसंधाताओं और साहित्यिकोंके लिए नई नई खोजों एवं गवेषणाओंको लिए हुए ये लेख बहुत ही उपयोगी है, और नित्य के उपयोगमें पानेकी चीज हैं अर्थात् एक अच्छी Reference book के रूपमें स्थित हैं अतएव इन सब लेखोंको एकत्रित कर पुस्तकके रूपमें निकालनेकी प्रतीक आवश्यकता थी । पं० नाथूरामजी प्रेमीके जैन साहित्य और इतिहास विषयक लेखोंका एक संग्रह कुछ वर्ष पहिले प्रकाशित हुना था । वह कितना उपयोगी सिद्ध हया, इसे उपयोग मे लाने वाले विद्वान् जानते हैं। इस संग्रहमें उस संग्रह के कुछ लेखों पर भी कितना ही नया तथा विशद प्रकाश डाला गया है। जैनोंके प्रामाणिक इतिहासके निर्माणमें इस प्रकारकी पुगतत्त्व सामग्रीकी अतीव आवश्यकता है। जैनसमाजमें इस प्रकारके युग-प्रवर्तक विद्वानोंमें पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार और पं० नाथूरामजी प्रेमी के नाम ही अग्रगण्य हैं। अत: इन दोनों प्राक्तनविमर्श-विचक्षण विद्वानोंका भारतीय समाज सामान्यत: और जैन समाज विशेषत: ऋणी हैं।Page Navigation
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