Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्व० बाबूलभाईनुं टुंक जीवन । आ व्यक्तिनो जन्म सुरतमां वीसाओसवाल ज्ञातिनां थयो हतो । मोटी उमरे पुत्र प्राप्तिनो योग मातापिताने स्वाभाविक आह्लाद जनक होय तेमन आ बालकनो जन्म तेना पिता अभयचन्दने पक्क उमरे आनन्ददायक थयो । मन्कुर अभयचंदनी आर्थिक स्थिति आ पुत्रा जन्म वखतथी सुघरवा लागी परंतु ते सद्भाग्यनो वैभव झाशीवार टक्यो नहीं। दश महिनानी लघु वयमां आ बालकने पितानो वियोग थयो, अने तेथी करीने तेने उछेरवानी तथा केळववानी फरज तेनी पंदर वर्षेनी विधवा माता तथा काका ऊपर आवी पडी । आ बालकमां तेना पिताश्रीनो नम्रता अने सुशीलतानो गुण मोटे अंशे उतरी आव्यो हतो । उत्तम जैन धर्मना संस्कारो नानपणथीज बालकोना कोमल हृदयपर सचोट जामे, अने हाल अपाती एकली इंग्लीश केळवणीथी केटलाक युवकोनां चित्त धर्मविमुख थई जाय छे ते न थाय एवा हेतुथी आ सुरत शहरमां बे धर्मानुरागी विद्वान गृहस्थोना स्तुत्य प्रयासथी पूज्य पं श्री सिद्धिविजयजी गणी (हाल सूरिपदालंकृत) नी पंन्यास पदवी प्रसंगे स्थापन थयेली श्रीरत्नसागर जी जैन विद्याशाला - धार्मिक तथा व्यावहारिक केळवणी मफत आपती प्रथम संस्था-मां आ बालकने अभ्यास माटे मुकवामां आव्यो । आ शालामां शरुआतथी अंग्रेजी त्रिजा धोरण सुधीनुं तथा धार्मिक पंच प्रतिक्रमण विगेरेनुं शिक्षण अपातुं हतुं ते पूर्ण करी सरकारी हाइस्कूलमां चोथा धोरणमां दाखल थया । तेमनो स्कूल अभ्यास प्रशंसा पात्र हतो परंतु टुंक आयुष्यने लीघे सं. १९६८ना आश्विन मासमां देहमुक्त थया तेथी कंइ विशेष करी शक्या नहीं । आ संसारमां टुंका आयुष्यवाळाओमां प्रायः चालाकी निपुणता विवेक आदि गुणो झलकी रहेला दीठामां आवे छे तेमज आ व्यक्ति अंगे बन्युं छे । For Pitvale And Personal Use Only Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir

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