Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ भूमिका। प्रिय पाठक गण, ' मुझे अत्यन्त हर्ष है कि मैं आपके सन्मुख अत्यन्त परिश्रमके पश्चात ये पुस्तक रखने में सफल हुआ हूं। मैंने इसमें जो भी रचा है वो सब श्री १०८ श्री विषेण आचार्य प्रणीत श्री पद्मपुराणजी के आधार पर । यद्यपि यह ग्रन्थ बहुत बड़ा और विस्तार पूर्वक है किन्तु फिर भी आज कल की आवश्यक्ता के अनुसार ही उसमें से चुन चुनकर लोगों के हृदय से असत्यता को दूर करने और सत्य वृतांत का प्रकाश करने के लिये अत्यन्त संक्षेप से रचना की है । इसमें और तो सब बातों पर उन्हीं पर प्रकाश डाला गया है जो भाज कत्ल प्रचलित हैं। विशेष बातें कंवल इतनी ही दिखाई गई हैं जो कि प्रचलित नहीं हैं किंतु उनकी आवश्यक्ता थी, जैसे रावण का जन्म उसका राज्य तथा कैलाश पर्वत को उठाना यज्ञों की उत्पत्ती कब और किस प्रकार हुई, हनुमान का जन्म और रावण से उसका क्या सम्बन्ध था, जनक की राजधानी पर म्लेक्षों का उत्तर की ओर से हमला, लव कुश का जन्म सीता की अग्नि परिक्षा । इसमें पांचों भागों में पांच नकल रखी गई हैं सो वो भी सुधार की दृष्टी से हैं किसी द्वेष वश नहीं हैं। फिर भी यदि इस पुस्तक में की कोई बात चुभने वाली हो तो क्षमा करें। प्रार्थी:--विमल

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