Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 8
________________ VII निर्देश भी करती है. तत्पश्चात् आगम वाह्य ग्रंथों में तो अनकानक कथा ग्रंधा का निर्माण हुआ है.. विशाल कथाएं. संक्षिप्त कथाएँ. रुपक कथाएँ, आख्यानक. आदि का निर्माण हुआ है उन सवका विवरण दना संभव नहीं अत: कुछ महत्त्पूर्ण कथा ग्रंथों का निर्देश ही पर्याप्त मान रहा हु. गम के विषय में भारत में अनेक कधाओं का निर्माण हुआ. न कवल वाल्मीकी का रामायण ही अपितु अनक विभिन्न धमाँ में विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न भाषाओं में रामायण की रचना हुई है . इन पब उपलब्ध रामायण ग्रंथों में पवस प्राचीन रामायण विमलसूरि की पउमचरिय है उसम गमकी विस्तृत जीवनगाथा दी हुई है. जो प्रचलित रामायण में कई जगह भिन्न है उसका अध्ययन अन्चंत आवश्यक है. तत्पश्चात संघदास गणि की वपुदेवहिंडी सुप्रसिद्ध है. वसुदेव की यात्रा प्रवासका वर्णन इसमें प्राप्त होता है. यात्रा प्रवास के दौरान प्राप्त कधाओं का एक विस्तृत संग्रह इगम है अनेक संत महात्माओं का जीवन वृत्त भी दिया गया है. जैन धर्म का ही नहीं किन्तु आर्य संस्कृतिका यह एक अणमाल ग्रंथ है. आचार्य हरिभद्रमूरि का मुप्रमिन्द्र कथा-ग्रंथ ममग़इच्चकहा चराग्यपरक एवं गंमार स विरक्ती पैदा कराने वाला श्रेष्ठ ग्रंथ है. जिसका दा विटाश की अनंक भाषाओं में अनुवाद हा चूका है. वर और ट्रेप की वृत्ति में जन्म जन्मान्तर मकिय तरह पतन हाता है उसका अदभत वर्णन किया गया है. धत्ताख्यान भी हारभद्रमरिका प्रसिद्ध कथाप्रथ है. दाक्षिण्य चिह्न उद्योतनसूरि कृत कुवलयमाला भी अत्यन्त सुप्रसिद्ध कथा ग्रंथ है. जिसमें क्रोध, मान, पाया, लोभ एवं माह के दुष्परिणामों का वर्णन किया गया है. यह ग्रंथ भी भापा एवं शैली के कारण ही श्रेष्ठ नहीं है अपितु मानब भावां का सहज निरूपण इसम किया गया है और शुभ भावा मं उन्नति एवं अशुभ भावों से अवनति का वर्णन याधकका बल प्रदान करता है. इसी शृंखला में शीलांकाचार्य का चउपनमहापुरुष चरित्र, तिलकमंजरीकथा, भुवनमुटग कथा, धनश्वर मुनि विरचित सुरसुंदरी कथा, महसूरि रचित मीता चरित्र, भद्रश्चरस्कृत कहावली कथा. आख्यानकमणी काश, विभित्र तीर्थंकर चरित्र. कुमारपाल चरित्र, गिग्बिाल कहा, जम्बूमामी कहा, मनारमा कहा प्रमुख है. उपदेशमाला, गीलाबदस माला. चमपरीक्षा आदि ग्रंथों में भी अनेक कथाएँ मिलती है... __संप्कृत भाषा में भी अनेक कथा ग्रंथाका निर्माण हुआ है. अनेक प्रवन्ध. महाकाव्य एवं कथाग्रंथा की ग्चना हुई है जिसमें कई कथाएँ ना विश्व प्रसिद्ध है यथा धनपाल विरचित तिलकमंजरी कथा, कलिकाल सर्वज्ञकृत त्रिपप्ठिशलाका पुरुप कथा एवं परिशिप्ट पर्व आदि, उमक अतिरिक्त धर्मरत्न करंडक. कथा रत्नाकर आदि प्रमुख है. अव लाकभापा में मंग्कृत एवं प्राकृत का प्रचलन लुप्त होता गया और उनका स्थान अपभ्रंश एव क्षेत्रिय भाषाओं ने लिया तव जैन मनिपिओं ने सामान्य जनों का उपकारी कथा पाहित्य का निमाण लाकभोग्य भाषा में शरु कर दिया. उसमें रास, चौपाई. आख्यान. प्रमुख है. जस अवविद्याधर राम, आराम शांभा राप्त एवं चौपाई, मलतुंग मलवतीरास. नलदवदती रास, शकुंतला राम, शीलवती रास आदि अनेक रास प्राप्त होते है. आजभी अनक राम कवन पाइलिपिओं में है जिसका प्रकाशन होना शेप है... इस प्रकार कथा साहित्य का प्रत्येक युग में विकास होता गया है. इस प्रकार जैन कथा साहित्य अत्यंत समृद्ध एवं श्रेष्ठ है. पृज्य गच्छाधिपति आचार्यश्री कैलाशमागरसूरिजी ने इन कधाग्रंथों में से कुछ महत्त्वपूर्ण कथाओं का चयन करक कथार्णव नामक ग्रंथ प्रकाशित करवाया था. प्रस्तुत ग्रंथ संस्कृत भाषा में

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