Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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३२० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. सरोवर में खोदाव्यु. या वात सांजलीने राजायें मंत्रीने कर्यु के, हे मंत्री! तें मारा मननुं शखित जाण्युं, माटें तुं महाबुद्धिमान बो. कयुं के,-'थ न्येन चिंतितं कार्य, जानाति स विचक्षणः ॥ महामंत्री नवेशझो, यथानू स्स सरस्करः ॥ इति दशमदृष्टांतः ॥ ११ ॥ हवे मूर्खनी जणेली गाथा सांजलीने पडरने पण क्रोध चढे ते कपर पंकि
तना हाटमांहेला परना तोलानोथगीयारमो दृष्टांत कहे . ॥ स्थित्वैकः कृतिहट्टके जडमतिः प्राहानृतार्थी कति, हट्टस्था सम शैलकाः सुचलिताः श्रुत्वा जडस्योंदितम् ॥ क्रोधानेऽकथयन्नरे जडमते त्वं याहि वकायतो, हस्ते कोऽपि बलं ददाति हि करिष्यामो रदोत्पाटनम् ॥ १५ ॥ अर्थः- को एक पंमितना हाटमां बेसीने कोइ एक जडमति खोटी गाथा नगतो हतो. तेवारे ते पंमित हाटमां हतो नहीं. पण ते जड नीकहेली गाथा सांजलीने हाटमां पांचसेरी अधशेरी प्रमुख पजरना तोलां पडेला हता, तेने रीश चढी. तेवारे ते क्रोधथी कहेवा लाग्यां के हे जड मति? अमारा मुख बागलथी उठीने तुं दूर जा. अमे पंमितनां तोलां जैयें. माटे अमारा बागल खोटी गाथा नवाथीथमने उलटीयावे , उबको
आवे , एवामां जो कदाचित् ब्रह्मा अमारा हाथमा बलापशे, तो थ में ताहरा बत्रीशे दांत पाडी नांखयुं ॥ १२ ॥ कयुं के॥गाहा नाइंग मारो, पडरा थरहरंति दट्टममि ॥ पाडेमि दंतपकिं, चउक्त जे को हब बलं दे ॥ १ ॥ इति एकादश दृष्टांत ॥ १२ ॥ हवे मूर्खजन जो पोतानी मूर्खाइ बाहेर पडवाथी मुंजाइने अन्यदेशे जाय. तोपण तेनुं मूर्खत्व मटतुं नथी, ते ऊपर एक पुरुष, बारमो दृष्टांत कहे जे.
॥ कश्चित् स्वेष्टजना वदंति जड रे त्वं गब तिष्ठाथ वा, श्रुत्वा नागरि कास्तथादुर खिला रोषात् विदेशं गतः ॥ दृत्वाकस्ये स करं जलं पिबति तत् पूर्णोदरो मस्तकं, नार्या कंपयति प्रवीक्ष्य हि जडोसि प्राह कैलक्ष्णैः ॥१३॥
॥ अर्थः- को एक मूर्ख मनुष्यने पोतानां मातापितादि सगा वहालां बोलावे त्यारे एम बोलावे के, हे जड! तुं बेस. अथवा हे जड ! तुं उनक जोरहे, अथवा हे मूर्ख परहो जा.एम नगरना लोको सांजलीने सर्व ते जड ने तेमज बोलाववा लाग्या. पण कोइ नाम ल बोलावे नहीं. तेथी ते मूर्ख ने रीश चडवाथी परदेश गयो,मार्गमां को एक नगरने पादर तरष्यो थयो.

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