Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 346
________________ ३३४ जैनकथा रत्नकोष भाग पांचमो. र मदगंधने जेवामाटे थाव्यो, अने ते हस्तीना गंमस्थलने विषे बेगे थ को, गुंजारव करवा लाग्यो. ते वखत एक कवि मनमां चिंतवन करीने ते चम रने देवा लाग्यो, के है मूर्ख चमरातुं हा केम वेठो बो? यांही तारो श्रर्थ सरशे नहीं. जेमाटे मदने यापे ते ए हाथी नथी. मद यापनारा सर्वे हा यो वनने विषे तथा पर्वतने विषे वसे बे. माटे मदगंधनी इवा होय, तो तुं उतावलो त्यां जा. कयुं बे, के ॥ श्लोक ॥ रे चंचरीक मदलोलकपोलवा सी, नित्तिस्थनागवदनेऽत्र कथं स्थितोऽसि ॥ ये दानदा घनघनाघनघोर शब्दा, स्ते वारणा वरतरा विपिने वसति ॥ २२॥ इति एकवीशमो दृष्टांत ॥ हवे मूर्ख साधें पंमितें वाद न करवा खश्रयी बावीसमो दृष्टांत कहे बे. ॥ मूर्खौ पथि गवतः कुसुंमितं ताच्यां पलाशडुमं दृष्ट्वा वक्ति हि पा टलंडमति मूर्ख नो पाटलः ॥ वादं तौ कुरुतो जडेन सुकविर्यष्टयादि निस्ताडितो, यष्ट्यामुष्टिवशाद्विमुंचं जड रे जो पाटलः पाटलः ॥ २३ ॥ अर्थः- कोई एक समयें मूर्ख ने पंमित ए वे जल मार्गने विषे चा व्या. तेटलामां रस्ताने मिषे एक पुष्पयुक्त खाखरानो वृक्ष जोयो. त्यारे मूर्ख मनुष्य कहेवा लाग्यो, के या पाडलनुं फाड के फल्यो फुल्यो बे. ते सांजली पंकित बोल्यो के, हे मूर्ख ! ए पाऊल टक् नथी पण पालाशवृद बे. तुं गुंजाणे ? तेवारें मूर्खायें कयुं के तुं गुंजाणे. ए पामल बे. एम वा द करवा लाग्या. तेवारें मूर्खने रीश चडी तेथी लाकडी लइने पंमितने मा रवा लागो. तेवारें पंमित बोल्यो, के मारीश मां मारना जयथी पंमित कहे वा लाग्यो के हाहा ए पामलवृक्क बे. जेम मुर्खायें कयुं तेम कबुल कयुं. माटे मूर्खानी साथे वाद न करवो. कयुं, बे के ॥ श्लोक ॥ पलाशं पुष्पितं दृष्ट्वा, मूर्खो वदति पाटलं ॥ यष्टिमुष्टिप्रसादेन, जो जो पाटलपाटलः ॥ जे स्त्री पोताना स्वामीपासे पोतानुं चलण करवानी इवा करे तेनी केवी दशा याय ते ऊपर स्त्रीपुरुषनो प्रेवीशमो दृष्टांत कहे बे. ॥ लात्वा स्त्रीं पथिको गृहात्प्रचलितो ह्यये सनीरां नंदीं, दृष्ट्वा साह धवं ममांत्रियुगले रंगोस्ति संगृह्य सः ॥ तस्याः पादयुगं हि कर्षति सरि तीरे गतः सा मृता, न्यस्ता मूढ कृतं किमाह तनुनृन्नष्टापि रंग स्थितिः ॥ २४ ॥ प्रार्थ:- कोई एक पथिकजन पोतानी स्त्रीने सासरेथी तेडीने पोताने गाम जतो हतो. चालतां थकां मार्गमां एक नदीने पूरें श्रावेली जोइने

Loading...

Page Navigation
1 ... 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401