Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 368
________________ ३५.६ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. वा बेठो तेने देवतायें प्रश्ननो अर्थ पूयो ने कयुं के एनो अर्थ कहे तो ताहरा चार जाइ पण जीवता थाय ने तुं पण पाणी पीये. ते सांगली राजा युधिष्ठिरेंक के बोल तहारे गुं पुबवुं बे ? तेवारें देवतायें प्रश्न कस्यो तेनो अर्थ धर्मराजायें कह्यो. तेना श्लोक कहे बे ॥ को मोदते किमाश्चर्य, का वार्त्ता कः पयः स्मृतः ॥ एतन्मे ब्रूहि राजेंद, मृता जीवंति पांमवाः ॥ १ ॥ हवे चारे प्रश्ननो उत्तर कहे बे ॥ पंचमेऽहनि षष्ठे वा, शाकं पच ति स्वगृहे ॥ नृणी चाप्रवासी च, स वारिचर मोदते ॥ २ ॥ श्रहन्यहनि नूतानि गत्येव यमालये ॥ शेषा हि स्थातुमिचंति, किमाश्चर्यमतः परं ॥ ३ ॥ यस्मिन्महामोहमहाकटाहे, सूर्याग्निना रात्रिदिधनेन ॥ मासा विपरिघट्टनेन नूतानि कालः पचतीति वार्त्ता ॥ ४ ॥ तर्कप्रनष्टश्रुतयोपि निन्ना, नासामृषिर्यस्य वचः प्रमाणम् ॥ धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां, महा जनो येन गतः स पंथाः ॥ ५ ॥ देवतायें खुशी थइ चारे नाइने जीवता करया. हवे स्त्री चरित्र ऊपर उप्पनमो दृष्टांत कहे बे. " ॥ विप्रस्त्री च बहिर्विनेमि दिवसे काकात्तदा प्रेषति, साई छात्रकमेकदा निशि गृहात्सा निर्गता ष्टष्ठगः ॥ मार्गे पश्यति नर्मदोत्तरगतां दत्वा हरस्या ari, सुप्तागत्य गृहे तथा ह्यवगतं सोऽवक्चरित्रं तव ॥ ५७ ॥ अर्थःको एक ब्राह्मणनी पासें घणाएक विद्यार्थी जणता हता, परंतु ते विप्र नत्र दिवस विषे जेवारें बाहेर जातीहती तेवारे पोताना धणीनें नि त्य कती हती के, हुं बार जानंबुं त्यारे रस्तामां कालाकाला पछी एट ले कागडा नामना पीथी बीढुं बुं, माटे ज्यारे हुं बाहेर जावं त्यारे महा साये तमारा एकेक छात्रने ( विद्यार्थी ) ने मोकलो; तेवात खरीमानीने ब्राह्मण तेमज करवा लाग्यो. एक दिवस एक माह्यो छात्र हतो तेथे जा एयुं के या स्त्री, स्त्री चरित्र करे बे. दिवसें ज्यारे कागडाथी जय पामे बे त्या रेरा कम करती हशे ? एमविचारी कांइक मिस करी त्यां गुरुने घेरज बानो छुपी रह्यो. तेटलामां ते स्त्री रात्रें घरमांहेथी एकली बाहेर नीकली ते नर्मदा नदीना सामाकांता परगइ त्यांविट्पुरुष साथे दुष्टाचरण करी पा बी जलतरीने या कांठे यावी तेनी पढवाडे विपुरुष पण तरतो चाल्यो खावे बे, तेटलामां जनमांथी कोइक मगरे ते जार पुरुषनो पग पकज्यो. त्यारे ते स्त्रीयें कयुं के ते मगरमत्स्यनी आंखो पर पाटु मारतो तरत बो

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