Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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________________ 3 जैनकथा रत्नकोष नाग पाचमो. था दटाइ गयुं, तो पण ते समतावंत मुनिनो नाव पांमवो भने कौर वो बेहुनी पर सरखो रह्यो. ए दृष्टांतें सामायिकने विषे पण सम परि णाम राखवा. कडुं ने के, श्लोक // नक्तेषु पांमुपुत्रेषु, धार्तराष्ट्रेषु दंतृषु // समो जावो नवेद्यस्य, राजर्षिः समुदाहृतः // 1 // ए७ // इति सामा यिकमां समता राखवा आश्रयी सत्तापुमो दृष्टांत समाप्त // हवे विद्या नवा उपर यापुमो दृष्टांत कहे . // स्नानार्थ जलमाहरन्निजसुतं दृष्ट्वावदत्तं प्रसूः, मूढस्त्वं कथमाह शास्त्रसकलं ज्ञात्वागतः सा पुनः // नाधीतं यदि दृष्टिवादमखिलं श्रुत्वा क तत्तोशलौ, गत्वा पाग्य तं मुनिं मम समो नूत्वानवज्झो वरम् // एए॥ अर्थः-कोई एक ब्राह्मण जणीने घेर श्राव्यो, तेवारें स्नानने अर्थ पा गी मगाव्यु. तेणें एक घडो नरेलो.आण्यो ते जो पंमितें कह्यु के मारूं स्नान एम न थाय. घडा जरी नरीने माहरे मस्तके नाखो तो स्नान थाय. त्यारे तेनी मातायें कह्यु के तुंमूढ रह्यो देखाय ,नण्यो जणातो नथी. ते वारें पुत्र कहेवा लाग्यो के, ढुं संघलां शास्त्रो जणी गणी विचारी चर्ची धारीने आव्यो बुं. तो ढुं मूर्ख केम ? त्यारे मा बोली के, तुं ज्यांसुधी दृष्टिवाद नथी नण्यो, त्यां सुधी कांई लण्यो कहेवाय नहीं. ते सांजलीने ते विचारवा लाग्यो जे ए ग्रंथ कोण नणावशे ? मातायें कडं जे तुं, तो सली आचार्य पासे-जाते जणावशे त्यारे तेणे तेमनी पासें जश्ने कयुं,जे मने दृष्टिवाद नणावो ? गुरुये कह्यु जे तुं अमजेवो थाय तो तने नणावी ये. त्यारे ते साधु सरखो थश्ने लण्यो अने जणीने श्रेष्ठ पंमित थयो, पनी समजीने फरीने दीदा लीधी. अर्थ सस्यो. कर्वा डे के // किं ताए पढियाए, पयकोडीए परालनूयाए // इत्तियं न नायं, परस्त पीडा न कायवा // 1 // // एए // ए विद्या जणवा ऊपर अहाणुमो दृष्टांत समाप्त // हवे सर्व दानमां महोटुं अजयदान 3 ते ऊपर एक राजानी चार राणीयोनो नवामो दृष्टांत कहे जे. // स्त्रीणामिष्टवरं कदा नृपतिना तुष्टेन दत्तं च तं, प्रोचुस्ता हि वरं हरं न वधतां ज्येष्ठकघस्रोऽर्पितः॥ तस्य स्वे महिमा तया कृत इतोहान्यां च तह त्परे, सत्रातश्वरमा तदा कलिरनूत्स्तेनेन ता वारिताः॥ 10 // अर्थःएक दिवसे कोई एक राजा पोतानी चार राणीयो कपर तपमान से

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