Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 355
________________ ३४३ दृष्टांतशतक. न जानाति, दृष्ट्वा दृष्ट्वा करोति यः ॥ स फुःखी स्याद्यथाफेरु, स्युट्यत्पुलो ह्यधोऽपतत् ॥ ॥ १ ॥ ३५ ॥ हवे मोहोटानी बाया पण फल दायक ने तो महोटानी संगती फलदायक होय तेमां तो गुंज कहेQ ! ते ऊपर एक नरवाडनो पांत्रीशमो दृष्टांत. ॥ व्युत्वाधो न्यपतन्फलानि स ततो दृष्ट्वा तदाचितयद, गोपो मुनि हि खेंगमस्य पतिता बाया वरा बुद्धिदा ॥ श्लोकस्तस्य कृतश्च पादरहितः बाया गता मो पदं, तादृक् तेनहि पूरितं निजधिया मक्केति कुंमालिकं ॥ ३६ ॥ अर्थः-एक कूवामां जांबुवदनां फल टूटी पडतां हतां. ते कोई गोवा लीये दीवां, तेवारें गोवालीयें चितव्यु, जे या फल खावा लायक . एम विचारे में, एटलामां तिहां गोवालना माथा ऊपर सरस्वतीना विमा ननी बाया पडी तेवारे ते गोवालने बुद्धि उपजी तेथी तेणे एक श्लोक नां त्रण पद जोड्यां. एटलामां विमाननी बाया चालीगइ, अने चोथु पद तो थयुं नहीं. तेवारे तेहज गोवालिये पोतानी बुद्धिथी तेहबुज चोथु पद रच्यु. ते पद कहे जे डबक बने कुंडालुं. हवे जे श्लोक तेणे रच्यो ते कहे ॥जंबूफलानि पक्कानि,पतंति विमले जले॥पतितान्ये वदृश्यं ते, मबक अने कुंमालुं ॥१॥ गयैव फलदा पुंसां, महतां तु विशेषतः॥ विमानबायया वाण्या, गोपो हि पटूतां गतः॥१॥३६॥ सहिद्याथी सहु चमत्कार पामे ले ते ऊपर बत्रीशमो दृष्टांत कहे . ॥ कोप्यागत्य विशारदो वदति में विद्यां नृपं पश्य नो, स्त्री मुक्त्वे शगृहे गतो हि गगने मृत्वापतत् तत्समम् ॥ सा दग्धा पुनरागतो मम वशे त्वं देहि वार्तापि सः, कूटं नोवद चानयामि हि वरं लात्वा गतो विस्मितः ॥३७॥ अर्थः-को एक पुरुष पोतानी स्त्रीने लश्ने कोइ राजाना दर बारमा श्राव्यो, अने राजाने का के माहारी विद्या जुवो. तेने राजायें क ह्यु के जले देखाडो. त्यारे ते पोतानी स्त्रीने अंतःपुरमा मूकीने गयो अने कर्वा के आकाशमां इंश्नी अने दैत्यनी मांहोमांहे लडाइ थाय . माटे त्यां दुं जा बुं एम कहीने गयो पडी थाकाश विषे जश् मरण पामीने तेना हाथ पग शरीर प्रमुख नीचे पड्यां ते जोक्ने ते पुरुषनी स्त्री पण पोतानो स्वामी पज्यो हतो तेनी साथें चयमां सती थ ने बली गश्के तरतज ते पुरुष पाडो राजानी पासें याव्यो अने कह्यु के माहरी स्त्री या

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