Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 362
________________ ३५० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. णो असूरों विलंबें गयो. त्यारे क्रोधायमान थ सिंहे शशलाने कयुं के तुं केम वेहेलो याव्यो नहीं ? त्यारे शशलें कडं के हे वनराज! ताहरो शत्रु बीजो सिंह वनमां आव्यो . तेणे मने पाववा दीधो नही तेथी ढुं रोकायो, तेने सिंहे कयुं जे मारो कुश्मन बताव्य. तेवारें सिंहने पोता नी साथे लइ वनमा एक जल नरेल कूवो देखाडधु के जो तारो शत्रु या मां बेटो ने, पनी सिंहे कूवामां जोयुं त्यां प्रतिबिंब रूप बीजो सिंह जो वामां आव्यो, तेने जोश सिंह कूवामां पज्यो ने मरण पाम्यो. एम बुद्धि यें करी शशलायें सिंहने मास्यो कहुं ले के, श्लोक ॥ बुर्यिस्य बलं तस्य, निर्बुदेश्व कुतो बलं ॥ वने सिंहो मदोन्मत्तो, शशकेन निपातितः ॥ १ ॥ हवे कविनी चतुराइनो सुडतालीशमो दृष्टांत कहे . ॥ व्युष्टे याति कविः करेण पतिना कूर्यो यदा कर्ण्यते, केशोपि स्वकरे विलोक्य कथितो निर्नाग्य लायैककै ॥ सोवक्किं हि करे ददासि तव मे ना ग्यं तदा ज्ञायते, तुष्टः सन्कलयन् ददाति कवये कृत्वेशकाव्यं गतः ॥४॥ अर्थः-एक दिवस प्रजातने विषे एक पंमित राजानी सनामां याचना माटे आव्यो. राजाने एवी प्रतिज्ञा हती के कोड याचक आवे तेवारे पो तानो जमणो हाथ दाढी ऊपर फेरवे अने जेटला केश हाथमां थावे ते टली शोनामोहोर तेहने आपे. आ पंमितनी वखत राजाने दाढीनो ए कज केश हाथमा याव्यो त्यारे राजायें कवीने कह्यं के हे निर्नागीना शे खर तुं एक सोनयो ले. पंमितें कह्यु के श्यामाटे ? तेवारें राजायें कह्यु के महारा हाथमा एकज वाल याव्यो माटे एक शोनामोहोर ले जो घणा केश यावत तो घणा शोनैया बापत. ते सनिली कवियें कह्यं के तमारी दाढी मारा हाथमां आपो तो मारु नाग्य जणाय या प्रमाणे प्रसंगोपात अवसरनुं वचन सांजली तेने पंमित जाणीने राजा खुशी थयो पनी सं कल्प करवा ब्राह्मणे हाथमां जल सीधुं ते जलमा जोतां जोतां राजाना वर्णननां सो काव्य कस्या. अने राजा पासेथी घणुं इव्य त गयो ते का व्यमांथी बेत्रण श्लोक उदाहरण माटे इहां लखीयें बैयें ॥ मालिनी तम् ॥ निवसतु तव गेहे निश्चला सिंधुपुत्री, प्रविशतु मुजदं चमका वैरिहंत्री॥ तव वदनसरोजे नारती नातु नित्ये, न चलतु तव चित्तात् पादपद्मं मुरारेः ॥ १ ॥ अनुष्टुपवृत्तम् ॥ त्वदीया दंष्ट्रिका राजन्, मदीये च करे जवेत् ॥ त

Loading...

Page Navigation
1 ... 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401