Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ . नागरीप्रचारिणी पत्रिका है और प्रस्तुत येरावली में इनको स्कंदिल का शिष्य लिखा है। पर यह निश्चय होना कठिन है कि यह थेरावली प्रस्तुत हिमवत्कृत है या अन्य कर्तृक। इसमें कई प्राचीन और अश्रुतपूर्व बातें ऐसी हैं जिनका प्राचीन शिलालेखों से भी समर्थन होता है , और इन बातों का प्रतिपादन इसमें देखकर इसे प्राचीन मानने को जी चाहता है, पर कतिपय बातें ऐसी भी हैं जो इस थेरावली की हिमवत्-कर्तृकता में शंका उत्पन्न करती हैं , वस्तुतः यह थेरावली हिमवत्-कृत है या नहीं यह प्रश्न अभी अनिर्णीत है, इसका निर्णय किसी दूसरे लेख में किया जायगा। यहाँ पर तो इसमें दी हुई काल-गणना और मुख्य मुख्य अन्य घटनाओं का दिग्दर्शन कराना ही पर्याप्त होगा। थेरावली की विशेष वाते थेरावली की प्रथम गाथा में भगवान महावीर और उनके मुख्य शिष्य इंद्रभूति गौतम को नमस्कार किया गया है और बाद में १० गाथाओं में प्रसिद्ध स्थविरावलियों के क्रम से सुधर्मा, जंबू, प्रभव, शय्यं भव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, आर्य महागिरि, १ राजा खारवेल का वंश-इसके बाप दादों के नाम, इसके पुत्र वक्रराय और पौत्र विदुहराय के नाम इत्यादि अनेक बातों का पता शिलालेखों से मिलता है, इसकी चर्चा उन स्थलों के टिप्पणों में यथास्थान की जायगी। २ रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेश वंश की स्थापना का उल्लेख, विक्रमार्क और गर्दभिल्ल संबंधी घटना, दो तीन जगह विक्रम सवती के प्रकार वगैरह ऐसी बातें हैं जो इस थेरावली की आर्य हिमवत् केन्द्रकान में संशय उत्पन्न करती हैं। For Private And Personal Use Only

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