Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ जैन काल-गणना ग्रंथकारों ने उल्लेख किए हैं। इसलिये इस थेरावली में वर्णित खास घटनाओं की सत्यता के संबंध में शंका करने का हमें कोई अवसर नहीं है। हाँ, इसमें यदि कुछ शंकनीय स्थल हो तो वह घटनावली का सत्ता-समय हो सकता है। इसमें अनेक घटनाओं के अतिरिक्त अनेक राजाओं और प्राचार्यों की सत्ता और उनके स्वर्गवास के सूचक जो संवत्सर दिए हुए हैं उनमें कतिपय संवत्सर अवश्य ही चिंतनीय हैं, पर जब तक थेरावलो की मल प्रति हस्तगत नहीं होती, इस विषय की समालोचना करना निरर्थक है। विद्वानों के विचारार्थ नीचे हम उन घटनाओं की सूची देते हैं जिनका सत्ता-समय थेरावली में स्पष्ट लिखा गया है। "शस्त्रपरिज्ञाविवरणमतिबहुगहनं च गंधहस्तिकृतम् । तस्मात् सुखबोधार्थ, गृह्णाम्यहमञ्जसा सारम् ॥३॥" (कलकत्तामुद्रित आचारांग टीका) उपयुक्त पद्य में केवल आचारांग सूत्र के एक अध्ययन-'शस्त्र. परिज्ञा' के विवरण का उल्लेख होने से यह भी कल्पना हो सकती है कि शायद शीलाचार्य के समय तक गंधहस्ति कृत विवरण छिन्न भिन्न हो चुके होंगे। इसी कारण से शीलांक को अंगों की नई टीकाएं लिखने की जरूरत महसूस हुई होगी। (१) गंधहस्ति कृत तत्वार्थभाष्य के संबंध में मध्यकालीन साहित्य में कहीं कहीं उल्लेख है पर इस भाष्य का कहीं भी पता नहीं है। धर्मसंग्रहणी टीका आदि में “यदाह गंधहस्ती-प्राणापानौ उच्छ वासनिश्वासा।" इत्यादि गंधहस्ती के ग्रंथ के प्रतीक भी दिए हुए मिलते हैं, पर इस समय गंधहस्ति कृत कोई भी ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32