Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८३ जैन काल-गणना हुआ था पर विरोधियों से तंग आकर दो वर्ष के बाद उसके उज्जयिनी में चले जाने पर पाटलिपुत्र का सिंहासन पुण्यरथ (दशरथ) को मिला था। संप्रति के स्वर्गवास पर्यत का वृत्तांत पहले दिया जा चुका है, इसलिये यहाँ पर संप्रति के बाद के मौर्य राजाओं का जिक्र थेरावली के ही शब्दों में दिया जाता है___"उज्जयिनी के राजा संप्रति के कोई पुत्र नहीं था इसलिये उसके मरने पर वहाँ का राज्यासन अशोक के पुत्र तिष्यगुप्त के पुत्र बलमित्र और भानुमित्र नामक राजकुमारों को मिला। ये दोनों भाई जैन धर्म के उपासक थे। ये वीर-निर्वाण से २६४ वर्ष के बाद उज्जयिनी के राज्य पर बैठे और निर्वाण से ३५४ व के बाद स्वर्गवासी हुए। ___ इसके बाद बलमित्र का पुत्र नभोवाहन उज्जयिनी में राज्याभिषिक्त हुश्रा। नभोवाहन भी जैनधर्मी था। वह निर्वाण से तीन सौ चौरानबे वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ। उसके बाद नावाहन का पुत्र गर्दभिल्ल--जो गर्दभी विद्या जाननेवाला था--उज्जयिनी के राज्यासन पर बैठा।" इसी प्रसंग में कालकाचार्य का वृत्तांत, उनकी बहन सरस्वती साध्वी का गर्दभिल्ल द्वारा अपहार और लड़ाई करके साध्वी को छुड़ाने आदि का वृत्तांत दिया हुआ है जो प्रति प्रसिद्ध होने से यहाँ पर नहीं लिखा जाता है। हाँ, यहाँ पर एक बात विशेष है, सब चूर्णियों और कालक For Private And Personal Use Only

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