Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका वाला था। धर्माराधन और समाधि के साथ यह वीर-निर्वाण से तीन सौ बासठ वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ। वक्रराय के बाद उसका पुत्र 'विदुहराय' कलिंगदेश का अधिपति हुमा । विदुहराय ने भी एकाग्र चित्त से जैन धर्म को पाराधना की। निग्रंथ समूह से प्रशंसित यह राजा महावीरनिर्वाण से तीन सौ पंचानबे वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ ।" उज्जयिनी की मौर्य राज्यशाखा महान् राजा अशोक के बाद मौर्य राज्य के दो हिस्से हो जाने का विद्वानों का अनुमान है, इस अनुमान का इस थेरावली से भी समर्थन होता है। भगा के राजवंशों के निरूपण में संप्रति के प्रसंग में कहा गया है कि संप्रति अपने विरोधियों के भय से पाटलिपुत्र को छोड़कर उज्जयिनी में चला गया था। उसी प्रसंग में यह भी कहा गया है कि निर्वाण से २४४ वर्षों के ऊपर अशोक का स्वर्गवास हुआ था और २४६ में पुण्यरथ (पुराणों का दशरथ) पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा था। इसका अर्थ यह है कि अशोक के बाद संप्रति पाटलिपुत्र का राजा "वेरस महाराजस कलिंगाधिपतिना महामेधवाहन वक्रदेव सिरिना लेणं" । (जिनविजय संपादित प्राचीन जैन लेखसंग्रह पृ० ४६ ।) (१) उदयगिरि की मंचपुरीगुफा के सातवें कमरे में विदुराय के नाम का एक छोटा लेख है । उसमें लिखा है कि यह लयन [ गुफा] 'कुमार विदुराय' की है। लेख के मूल शब्द नीचे दिए जाते हैं-- "कुमार वदुरवस लेन" (एपिग्राफिका इंडिका जिल्द १३ ) For Private And Personal Use Only

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