Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० नागरीप्रचारिणी पत्रिका सेलक आदि सात सौ श्रमणोपासक और भिक्खुराय की स्रो पूर्णमित्रा आदि सात सौ श्राविकाएँ, भी उस सभा में उपस्थित थीं। पुत्र, पौत्र और रानियों के परिवार से सुशोभित भिक्खुराय ने सब निग्रंथों और निग्रंथियों को नमस्कार करके कहामहानुभावो ! अब आप वर्धमान तीर्थकर प्ररूपित जैन धर्म की उन्नति और विस्तार करने के लिये सर्व शक्ति से उद्यमवंत हो जायँ"। भिक्खुराय के उपर्युक्त प्रस्ताव पर सर्व निर्मथ और निर्गथियों ने अपनी सम्मति प्रकट की और भिक्खुराय से पूजित सत्कृत और सम्मानित निग्रंथ और निग्रंथियाँ मगध, मथुरा, वंग प्रादि देशों में तीर्थकर-प्रयीत धर्म की उन्नति के लिये निकल पड़े। ____ उसके बाद भिक्खुराय ने कुमारगिरि और कुमारी. गिरि नामक पर्वत पर जिन प्रतिमाओं से शोभित अनेक गुफाएँ खुदवाई', वहाँ जिनकल्प की तुलना करनेवाले निग्रंथ वर्षाकाल में कुमारी पर्वत की गुफाओं में रहते और जो स्थविरकल्पी निग्रंथ होते वे कुमार पर्वत की गुफाओं में वर्षाकाल में रहते। इस प्रकार भिक्खुराय ने निग्रंथों के लिये विभिन्न व्यवस्था कर दी थी। ___ उपर्युक्त सर्व व्यवस्था से कृतार्थ हुए भिक्खुराय ने बलिस्सह, उमास्वाति, श्यामाचार्यादिक स्थविरों को नमस्कार करके जिनागमों में मुकुट-तुल्य दृष्टिवाद अंग का संग्रह करने के लिये प्रार्थना की। भिक्खुराय की प्रेरणा से पूर्वोक्त स्थविर प्राचार्यों ने प्रवशिष्ट दृष्टिवाद को श्रमण-समुदाय से थोड़ा थोड़ा एकत्र For Private And Personal Use Only

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