Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेन काल-गणना नगर से वापिस अपनी राजधानी में ले गया और कुमारगिरि तीर्थ में श्रेणिक के बनवाए हुए जिन-मंदिर का पुनरुद्धार कराके आर्य सुहस्ती के शिष्य सुप्रतिबुद्ध नाम के स्थविरों के हाथ से उसे फिर प्रतिष्ठित कराकर उसमें स्थापित किया । ___ पहले जो बारह वर्ष तक दुष्काल पड़ा था उसमें पार्य महागिरि और आर्य सुहस्तीजी के अनेक शिष्य शुद्ध आहार न मिलने के कारण कुमारगिरि नामक तीर्थ में अनशन करके शरीर छोड़ चुके थे। उसी दुष्काल के प्रभाव से तीर्थकरो के गणधरो द्वारा प्ररूपित बहुतेरे सिद्धांत भी नष्टप्राय हो गए थे, यह जानकर भिक्खुराय ने जैन-सिद्धांतों का संग्रह और जैन धर्म का विस्तार करने के लिये संमति राजा की नाई श्रमण निग्रंथ तथा निषियों की एक सभा वहाँ कुमारी पर्वत नामक तीर्थ पर इकट्ठो की, जिसमें आर्य महागिरिजी की परंपरा के बलिस्सह, बोधिलिंग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य, प्रादिक दो सौ जिनकल्प की तुलना करनेवाले जिनकल्पी साधु, तथा आर्य सुस्थित, आर्य सुप्रतिबुद्ध, उमास्वाति, श्यामाचाय प्रभृति तीन सौ स्थविरकल्पी निग्रंथ पाए । प्रार्या पाणी प्रादिक तीन सौ निग्रंथी साध्वियां भी वहाँ इकट्ठी हुई थीं। भिक्खुराय, सीवंद, चूर्णक, (१) नंदराज द्वारा ले जाई गई जिन-मूति को कलिंग में वापिस ले जाने का हाथीगुफा में इस प्रकार स्पष्ट उल्लेख है___ "नंदराजनीतं च कालिंग जिनं संनिवेसं...गृह रतनान पडिहारे हि अंगमागध-वसुच नेयाति [1]" (हाथीगुफा लेख पंक्ति १२, बिहार-श्रोरिसा जर्नल, वॉल्युम ४ भाग ४)। For Private And Personal Use Only

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