Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara Author(s): Kalyanvijay Publisher: Kalyanvijay View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागरीप्रचारिणी पत्रिका "सुद्विय सुपडिबुद्धे, प्रज्जे दुन्ने वि ते नमसामि । भिक्खुराय-कलिंगा-हिवेण सम्माणिए जिढें ॥ १०॥" इसके बाद इन्हीं गाथाओं में वर्णित प्राचार्यों की पट्ट-परंपरा का गद्य में वर्णन किया है, और कौन प्राचार्य निर्वाण पीछे कितने वर्षों के बाद स्वर्गप्राप्त हुए इसका स्पष्ट निर्देश किया गया है। इन संवत्सरों का उल्लेख हम आगे घटनावली में करेंगे। ___ यहाँ पर भद्रबाहु के स्वर्गवास के संबंध में एक नई बात देखने में आई है। श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास किस स्थान पर हुआ, इसका वृत्तांत मेरुतुंगीय अंचलगच्छ पहावली के अतिरिक्त किसी श्वेतांबर जैन ग्रंथ में मेरे देखने में नहीं पाया था। दिगंबर जैन साहित्य में भी इस बात का निर्णय नहीं है। बहुतेरे दिगंबर लेखक इनका स्वर्गवास मैसूर राज्य के हासन जिले में श्रवणबेलगोल के पास चंद्रगिरि नामक पहाड़ो पर हुआ बताते हैं, पर अन्य कतिपय ग्रंथकार इनका स्वर्गवास अवंति (मालवा) में हुआ ऐसा प्रतिपादन करते हैं; किंतु हमें इन उल्लेखां पर कोई विश्वास नहीं है; क्योंकि ये उल्लेख वराहमिहिर के भाई द्वितीय भद्रबाहु को श्रुतकेवली समझकर किए गए हैं, जैसा कि मूल लेख में प्रतिपादित किया गया है। श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास किस स्थान पर हुमा, इसका वृत्तांत पूर्वोक्त पट्टावली के सिवा कहीं भी नहीं मिलने से हम सशंक थे, पर इस थेरावली में इस विषय का स्पष्ट उल्लेख मिल जाने से इस संबंध में अब हमें कोई शंका नहीं रही। इस थेरावली के लेखानुसार भी श्रुतकेवली भद्रबाहु कलिंग देश में कुमार पर्वत पर (आजकल का 'खंडगिरि' जो विक्रम की १०वीं For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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