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जैन काल-गणना श्रमणियों को चातुर्मास्य में रहने के लिये अनेक गुफाएँ खुदवाई
और विविध प्रासनेवाली बुद्ध की मूर्तियाँ उनमें स्थापित की। गिरनार आदि अनेक स्थानों में अशोक ने अपने नाम से अंकित प्राज्ञालेख स्तूप तथा खडकों पर खुदवाए; सिंहल द्वीप, चीन, तथा ब्रह्मदेश आदि द्वीपों में बौद्ध धर्म का प्रचार करने के विचार से पाटलिपुत्र में बौद्ध अमर्णा की सभा की और उस सभा की सम्मति के अनुसार राजा अशोक ने अनेक बौद्ध श्रमणों को वहाँ ( सिंहलादि द्वीपों में ) भेजा। अशोक जैनधर्म के निम्रब-निग्रंथियों का भी सम्मान करता, पर उनका द्वेष कभी नहीं करता था।
अशोक के अनेक पुत्र थे। उनमें कुणाल नामक पुत्र राज्य के योग्य था। वह भावी राजा होने की संभावना से अपनी सौतेली माताओं की आँखों का काँटा था, इसलिये अशोक ने उसको अपने मंत्रियों के साथ उज्जयिनी नगरी में रखा, पर वहाँ पर भी सौतेली माँ के षड्यंत्र से कुणाल अंधा हो गया। यह वृत्तांत सुनकर अशोक बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने उस प्रपंची रानी तथा कतिपय नालायक राजकुँवरों को मरवा डाला और पीछे से कुणाल के पुत्र संग्रति को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया। महावीर-निर्वाण से २४४ वर्ष के बाद अशोक परलोकवासी हुआ।
संप्रति पाटलिपुत्र में राज्याभिषिक्त हुमा, पर वहाँ रहने में अपने विरोधियों की ओर से शंकित होकर उसने राजधानी पाटलिपुत्र का त्याग किया और अपने बाप को जागीर में मिली हुई उज्जयिनी में जाकर वह सुखपूर्वक राज्य करने लगा।
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