Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका - इसके बाद थेरावस्तीकार ने संप्रति का पूर्वभव संबंधी वृत्तांत और प्रार्य सुहस्ती द्वारा उसके जैन धर्म स्वीकार करने का हाल लिखा है, जो अति प्रसिद्ध होने से यहाँ नहीं लिखा जाता है। संति ने जैनधर्म के प्रचारार्थ जो काम किया उसका वर्णन थेरावली के ही शब्दों में नीचे दिया जाता है "प्राचार्यजी (प्रार्य सुहस्ती जी) ने कहा-हे राजन् ! अब तुम प्रभावनापूर्वक फिर जैन धर्म का पाराधन करो जिससे भविष्य में वह तुम्हें स्वर्ग और मोक्ष देने में समर्थ हो। प्राचार्य का उपदेश सुनकर राजा ने उज्जयिनी में साधु-साध्वियों की बृहत् सभा की और अपने राज्य में जैन धर्म का प्रचार करने के निमित्त अनेक गाँव नगरों में उपदेशक साधुओं को विहार करवाया; यही नहीं, अनार्य देशों में भी उसने जैनधर्म का प्रचार करवाया और अनेक जिन मंदिर तथा प्रतिमाओं से पृथिवी को अलंकृत कर दिया। महावीर-निर्वाण से २६३ वर्ष पूरे हुए तब जैन धर्म का परम उपासक राजा संप्रति स्वर्गवासी हुआ। महावीर-निर्वाण से २४६ वर्षों के बाद अशोक का पुत्र पुण्यरथ पाटलिपुत्र का राजा हुआ।' यह राजा बौद्ध धर्म का प्राराधक था। (१) यह पुण्यरथ और पुराणों का दशरथ एक ही व्यक्ति है। दशरथ के नाम के तीन शिलालेख खलतिक पर्वत पर आजीविक साधुओं को गुफाओं का दान करने के संबंध में लिखे हुए मिले हैं उनसे भी यह मालूम होता है कि प्रियदर्शि ( अशोक ) के बाद पाटलिपुत्र में दशरथ का राज्याभिषेक हुआ था । (देखो आगे का लेख ।) For Private And Personal Use Only

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