Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara Author(s): Kalyanvijay Publisher: Kalyanvijay View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन काल-गणना ८१ ने उपकेश नगर में १८०००० क्षत्रिय - पुत्रों को उपदेश देकर जैनधर्मी बनाया, वहाँ से उपकेश नामक वंश चला । भगवान् महावीर के निर्माण के बाद ३१ वर्ष बीतने पर काणिक पुत्र उदायी ने पाटलिपुत्र नगर बसाया और उसे मगध की राजधानी बनाकर वह राज्य का कारोबार वहाँ ले गया । उस समय में उदायो को दृढ़ जैन श्रावक जानकर साधु-वेशधारी किसी दुश्मन ने धर्मकथा सुनाने के बहाने एकांत में ले जाकर मार डाला । प्रभु महावीर के निर्वाण के अनंतर ६० वर्ष व्यतीत होने पर नंद नाम के नापितपुत्र को मंत्रियों ने पाटलिपुत्र नगर में राज्यासन पर बिठाया । उसके वंश में क्रमश: जंद नामक नव राजा हुए। उनमें का आठवाँ नंद अत्यंत लोभी था । मिध्यात्व से अंधे बने हुए उस नंद ने विरोचन नामक अपने ब्राह्मण मंत्री की प्रेरणा से कलिंग देश का नाश किया और तीर्थस्वरूप पर्वत पर कुमार श्रेणिक राजा के बनवाए हुए ऋषभदेव प्रासाद का नाश कर वह उसमें से ऋषभदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा को उठाकर पाटलिपुत्र में ले गया । महावीर - निर्वाण से १५४ वर्ष बीतने के बाद चाणक्य से प्रेरित मौर्यपुत्र चंद्रगुप्त नवें नंद राजा को पाटतिपुत्र से निकालकर मगध का राजा हुआ। चंद्रगुप्त पहले जैन श्रम का द्वेषी बौद्ध धर्मी था पर पीछे से चाणक्य के समझाने पर वह जैन धर्म कः दृढ़ श्रद्धावान् श्रावक हो गया था । ११ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32