Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara Author(s): Kalyanvijay Publisher: Kalyanvijay View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन काल-गणना तथा ११वीं शताब्दो तक कुमार पर्वत कहलाता था ) ही स्वर्गवासी हुए थे। थेरावली का शब्दानुवाद इस प्रकार है "अंतिम चतुर्दश पूर्वधर स्थविर श्री प्रार्य भद्रबाहु भी शकटाल मंत्री के पुत्र प्रार्य श्रीस्थूलभद्र को अपने पट्ट पर स्थापित करके श्रीमहावीर प्रभु के बाद १७० वर्ष व्यतीत होने पर पंद्रह दिन का निर्जल अनशन कर कलिंग देश के कुमार नामक पर्वत पर प्रतिमा ( ध्यान ) धारी होकर स्वर्गवासी हुए।" ___ इसके बाद प्रार्य स्थूलभद्र, महागिरि और सहस्ती का जिक्र है। आर्य महागिरि की प्रशंसा में “वुच्छिन्ने जिणकप्पे०" तथा "जिणकप्पपरीकम्म" ये दो प्रसिद्ध गाथाए दी हैं, जिनमें दूसरी गाथा के तृतीय चरण में कुछ पाठांतर है। टीकाओं और दूसरी पट्टावलियों में इसका तृतीय चरण "सिट्ठिघरम्मि सुहत्थी" इस प्रकार है, तब यहाँ पर "कुमरगिरिम्मि सुहस्थी,'' यह पाठ है। चूर्णियों में जो आर्य महागिरि का वृत्तांत मिलता है उससे तो प्रथम प्रसिद्ध पाठ ही ठीक ऊँचता है, पर यहाँ तो साफ लिखा है कि प्रार्य सुहस्ती ने कुमार पर्वत पर भार्य महागिरि की स्तुति की थी, इसलिये यह भी एक स्पष्ट मतभेद ही समझना चाहिए। मगध के राजवंश आर्य महागिरि और सुहस्ती का प्रसंग छोड़कर मागे बिंबिसार (श्रेणिक) और अजातशत्रु ( कोणिक ) तथा उदायी, नवनंद और मौर्य राज्य-संबंधी कतिपय For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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