Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara Author(s): Kalyanvijay Publisher: Kalyanvijay View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागरीप्रचारिणी पत्रिका घटनाओं का गद्य में वर्णन दिया है जो अवश्य दर्शनीय होने से हम उसका शब्दानुवाद नीचे देते हैं "उस काल और समय में, जब कि श्रमण भगवान् महावीर विचरते थे, राजगृह नगर मे बिंबिसार उपनाम श्रेणिक राजा भगवान महावीर का श्रेष्ठ अमयोपासक था, पावनाथ आदि के चरण युगलों से पवित्रित तथा साधु-साध्वियों से सेवित कलिंग देश के भूषण समान और तीर्थ-स्वरूप कुमार कुमारी नामक दोनो पर्वत पर उस श्रेणिक राजा ने भगवान् ऋषभस्वामी तीर्थकर का अति मनोहर प्रासाद बनवाया और उसमें श्री ऋषभदेव प्रभु की सुवर्णमयी प्रतिमा सुधर्मस्वामि द्वारा प्रतिष्ठित कराकर स्थापित की थी। इसके अतिरिक्त श्रेणिक ने उन दोनों पर्वतों में निर्मथ निग्रंथियों के चातुर्मास्य में रहने योग्य अनेक गुफाएँ खुदवाई थीं, जिनमें अनेक निग्रंथ और निग्रंथियाँ धर्म, जागरण, ध्यान, शास्त्राध्ययन और विविध तपस्या के साथ स्थिरतापूर्वक चातुर्मास्य करते हैं। श्रेणिक का पुत्र अजातशत्र अपर नाम काणिक हुआ जिसने अपने बाप को पिंजड़े में कैदकर चंपा को मगध की राजधानी बनाया। काणिक भी श्रेणिक की भाँति जैनधर्म का अनुयायी उत्कृष्ट श्रावक था। उसने भी कलिंग देश के कुमार तथा कुमारी पर्वत पर अपने नाम से अंकित पाँच गुफाएँ खुदवाई। पर पिछले समय में काणिक ने अति लोभ और अभिमान में आकर चक्रवर्ती बनने की इच्छा की, जिसके परिणाम स्वरूप उसे कृतमाल देव ने मार डाला। ___ भगवान महावीर के निर्वाण से ७० वर्ष के बाद पार्श्वनाथ की परंपरा के ६ठे पट्टधर प्राचार्य रत्नप्रभ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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