Book Title: Jain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Kalyanvijay

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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) जैन काल-गणना विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा [ लेखक - श्री मुनि कल्याणविजय ] काल-गणना संबंधी दो प्राचीन परंपराओं का वर्णन हमने मूल लेख में कर दिया है और उनके विवेचन में उपलब्ध सामग्री का यथेच्छ उपयोग भी कर दिया है, पर मेटर प्रेत में भेजने के बाद हमें इस विषय की एक नई परंपरा उपलब्ध हुई है जिसका संक्षिप्त परिचय इस लेख में दिया जाता है । कुछ दिन पहले मुझे मालूम हुआ कि कछ देश के किसी पुस्तक भांडार में प्राचार्य हिमवत्-कृत " थेरावली” विद्यमान है । मैंने इस प्राकृत भाषामयी मूल थेरावलो की प्राप्ति के लिये उद्योग किया और कर रहा हूँ, पर अब तक मूल पुस्तक मेरे हस्तगत नहीं हुई, केवल उसका जामनगर निवासी पं० हीरा. लाल हंसराज - कृत गुजराती भाषांतर प्राप्त हुआ है, प्रस्तुत लेख उसी भाषांतर के आधार पर लिखा जा रहा है 1 प्राचार्य हिमवान् एक प्रसिद्ध स्थविर थे । प्रसिद्ध अनुयोगप्रवर्तक स्कंदिलाचार्य और नागार्जुन वाचक का सत्तासमय ही इन हिमवान् का सत्ता समय था इसमें कोई संदेह नहीं है; क्योंकि देवर्द्धिगण की नंदी - येरावली में इनका स्कंदिल के बाद और नागार्जुन के पहले उल्लेख * यह पूर्व - प्रकाशित लेख का परिशिष्ट है । For Private And Personal Use Only

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