Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 2
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 13
________________ सम्पादकीय टिप्पणी विवादग्रस्त मानते हैं। इस संबंध में हमारी मान्यता उन आख्यानों से नहीं जुड़नी चाहिए जो इन गुफाओं के संबंध में कुछ जैन ग्रंथों में विद्यमान हैं और जिनको इन दोनों विद्वानों ने अत्यधिक विश्वसनीय माना है। यहाँ तो विचार का मुख्य आधार गुफा-२ के गर्भालय में विराजमान शैलोत्कीर्ण मूर्ति के मूर्तिशास्त्रीय लक्षण होने चाहिए, जिनकी सूक्ष्म परीक्षा इन दोनों विद्वानों ने पूर्णतया नहीं की है। यह मूर्ति ध्यान-मुद्रा में स्थित एक ऐसे व्यक्तित्व की है जो सर्प की सप्त (?)-फणावली की छाया में आसीन है, नीचे पादपीठ पर दोनों प्रोर एक-एक मृग का अंकन है जिनके मध्य एक खण्डित अंकन है जो निश्चित ही चक्र है। यदि यह मूर्ति बुद्ध की मानी जाये तो सर्प-फणावली का संबंध बुद्ध के जीवन के नाग-मुलिंद नामक उपाख्यान से जोड़ना होगा, परन्तु तब उससे मृग-और-चक्र प्रतीकों की संगति नहीं बनेगी, क्योंकि यह प्रतीक (मृग-दाव) सर्वत्र या अधिकतर, केवल बुद्ध की उस मति के साथ मिलता है जो धर्मचक्र प्रवर्तन-मद्रा में होती है। इसके विपरीत, इस मृग-और-चक्र प्रतीक की संगति तीर्थंकर-मूर्तियों के साथ पूर्णतया बनती है जिनके पादपीठों पर उसका अंकन सर्वत्र मिलता है। इसके प्राचीन ज्ञात उदाहरण, लगभग ६०० ई० के हैं, अकोटा की एक कांस्य-मति और ईडर की एक पाषाण-मूर्ति । इस तथ्य पर बल नहीं दिया जाना चाहिए कि धाराशिव-गुफा और अजंता की वाकाटक-गुफाओं की विन्यास-रेखाएँ मिलती-जुलती हैं, क्योंकि संकेत बार-बार मिलता है कि भारतीय स्थापत्य में रूपाकार, परंपरा-भेद होने पर भी प्रायः भिन्नभिन्न नहीं होते। अतएव, इन गुफाओं के मूलत: बौद्ध होने के संबंध में जो मैं पहले कह चुका हूँ उसमें संशोधन करता हूँ। इस ग्रंथ के प्रकाशन में मेरे जिन मित्रों ने अपनी सहायता दी है उनका उल्लेख प्रथम खण्ड में पृष्ठ १२-१४ पर दिया जा चुका है। उन्हें मैं कृतज्ञतापूर्वक पुन: धन्यवाद देता हूँ और उनसे निरन्तर सहयोग की अपेक्षा रखता हूँ। ५ अप्रैल, १९७५ अमलानंद घोष 1 (मिराशी) वासुदेव विष्णु . जर्नल ऑफ इण्डियन हिस्ट्री. 51. 1973. पृ. 315-27. 2 द्रष्टव्य प्रथम भाग में पृ 5. 3 यह सूचना निजी पत्राचार में डॉ० उमाकांत प्रेमानंद शाह ने कृपापूर्वक प्रदान की। वे और लिखते हैं : 'छठवीं शताब्दी से पूर्व की अधिकतर मूर्तियों में, यदि चक्र के दोनों ओर एक-एक मुग दिखाया गया हो तो वह मूर्ति शांतिनाथ की माननी होगी जिनका चिह्न मृग है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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