Book Title: Jain Jyotish Author(s): Shankar P Randive Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur View full book textPage 8
________________ अर्थात्-क्रूर ग्रहका लान होय और ४ स्थानमें क्रूर ग्रह होय, १० स्थानमें भी क्रूर होय तो उस बालकका जीवन बडा कष्टसे जानना। (ज्योतिषसार भाषा पृ. ७३) सप्तमे भुवने भानोर्मध्यस्थो भूमिनन्दनः ॥ राहुय॑ये तथैवापि पिता कप्टेन जीवति ॥ २॥ अर्थात- सप्तस्थानमें सूर्य होय और बारहवे स्थानमें राहु होय और इनके मध्यस्थानमें मंगल होय तो पिता बहुत कष्टसे बचे ! (ज्योतिषसार भाषा पृ०७३) अष्टमस्थो यदा राहुः केंद्रे चंद्रश्वनीचंगः ॥ तस्य सद्यो भवेन्मृत्युर्यालकस्य न संशयः ।। ३.॥ अर्थात्-अष्टमस्थानमें राहु और केंद्र में नीचका चंद्रमा होय तो बालक उसी वक्त मृत्यु पावे इसमें कुछ संदेह नहीं (ज्यो० सा० पृ० ७३) चतुर्थे च यदा राहुः पृष्ठे चंद्रोष्टमेऽपि वा ॥ सद्य एवं भवेन्मृत्युः शंकरो यदि रक्षति ॥ १ ॥ अर्थात्--जन्म समयमें चतुर्थ स्थानमें राहु ६ अथवा चंद्रमा ८ होय तो बालक तत्काल मृत्यु पावेगा; शंकर रक्षाकरे तो भी बचेगा नहीं. (ज्यो० सा० पृ० ७२) सूर्यात्रिकोणास्तगौ मंदारौ पापभगौ जन्मनि पिताबद्धः॥ चंदेंगे मन्देन्त्ये पापदृष्टे कारागारे जन्म ॥ २ ॥ अर्थात्-जन्मलग्नमें सूर्यसे नवम, पंचम वा सप्तम स्थानमें पापग्रहकी राशिपर शनि मंगल होवे तो उस बालकका पिता कैदमें समझना चाहिये ॥ चंद्रमा लाग्नमें होवे और शनि बारहमें होवे और इनपर पापग्रहकी दृष्टि होवै तो उस बालकका जन्म कारागार (जेलखाना ) में हुवा जानना ॥२॥ (ज्योतिषसार भाषा पृ.६१)Page Navigation
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