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ही असत्य है ? यहां यह किसकी गलती समझना ? इन बातोंका योग्य खुलासा निःपक्षपाती विद्वान अवश्य करें?
मुम्बईसे मद्राससे कलकत्तासे व पंजाबसे जो रेलगाडी निकलती हैं उसमें बैठनेवाले लोग वैधृति, व्यतिपात अमावास्या, मृत्युयोग, दग्धयोग यमघंटयोग ऐसे कुमुहूर्तपर निकलते हैं व वे भी इच्छित स्थलकू खुषीसे पहुचते हैं। और उनमें बैठे हुए हजारों प्यासिंजर्स अनेक स्टेशनपर उतरकर मानंदसे अपने अपने मकानों में जाते हैं। ___ कोई दफे अमृतसिद्धियोग सरीखे सुमुहूर्तपर निकली हुई रेलगाडी मकस्मात् होनेसे गिर जाती है इस बखत अन्दर बैठे हुये प्यासिंजर्स मृत्युमुहमें पडते हैं या जखमी भी होते हैं। ऐसे समयमें सुमुहूर्त या तिथि उनको सहाय करते नहीं. इसी तरह सुमुहूर्त प्रयाण समयमें देखने की मावश्यकता नहीं है ऐसा सिद्ध होता है।
कोई इसम कुयोगपर मरण पाया हो तो उस बखत-"पंचक किंवा सप्तक " उसको लगे हुये नान गेहूं के आटाके पांच या सात पुतले बनाकरके वे उस प्रेतके बराबर रखकर जलानेके अन्य मती मिथ्यास्वी ज्योतिषी कहते हैं। लेकिन ऐसा करना पाप है ऐसें जैनशास्त्रों में कहा है। कितने उपाध्येलोग भी ऐसे प्रसंगमें--जिन भगवानकी मूर्तीका पंचामृतसे अभिषेक करना कहते हैं परंतु ऐसा भी . करनेको जनज्योतिषमें कहा नहीं हैं उपाध्ये लोग अपने स्वार्थकेलिये ऐसे कहते हैं। ___ अन्यमती मिथ्यात्वी ज्योतिषशास्त्रों में वधुवरोंके घटित देखनेको कहा है उसमें-गण, नाडी, योनि, वैर योनि, प्रीति षडाष्टक, पाघडीमंगल, मृत्युषडाष्टक, चुदडी मंगल वगैरह अनेक प्रकार वधुवरोंके जन्मनक्षत्रोंसे देखते हैं उस बखत वधुवरोंके गुण मठारहसे जादा छत्तीस तक भानेसे वह घटित पसंत करते हैं। इस प्रकार उत्तम घटित जुले हुये 'ये