Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 12
________________ (e) दांपत्य इनमें से बहोत स्त्रियां विधवा हुई देखने में आती हैं। यौर बहोतसे पुरुष भी विधुर हुये ऐसे देखने में आते हैं । इससे अन्यमति मिथ्यात्वी लोगोंके ज्योतिषशास्त्रोंसे यह घटित देखना व्यर्थ है ऐसा कहना पडता. - स्वयंवर के समय यह घटित देखना शक्य ही नथा, वहां एकत्रिवहुये राजे उसमें से जो वर उस राजकन्याके दिलको आयगा वह ही पसंत करके उसके गले में माला डालती है । नैनज्योतिषमें घटित देखनेको कहा नहीं. इससे कितने कलियुगी पंडित कहते हैं कि सब जैनशास्त्र तुमने देखा है क्या ? दूसरे कितने कहते हैं- हाल अन्यमति प्योतिष सरिखा जैनज्योतिष ग्रंथ उपलब्ध होने बाद हम तुमको बतायेंगे । ऐसा कह कर हालही अन्यमति मिथ्यात्वी ज्योतिषमयों के ऊपर विश्वास रखनेको कहते हैं व ब्राह्मणोंके और अपने ग्रंथ एकही हैं उनमें समन्वय करना चाहिये ऐसे कहते हैं याने किसी प्रकारसे अन्यमति ब्रामणोंके ग्रंथ नैनलोकोंमें घुसढ देना यह उनकी इच्छा दीखती है. केई पंडितलोक नितिशास्त्र में अन्यमति मिध्यात्वीका ज्योतिषशास्त्र घुस देना चाहते हैं । परंतु इस बारे में आदिनाथ पुराण पर्व ४१ में जो लिखा है सो इस मुजब - pe तदुपज्ञं निमित्तानि (दि) शाकुनं तदुपक्रमम् ॥ तत्सर्गों ज्योतिषां ज्ञानं तं मतं तेन तत्रयम् ॥ १४७॥ इन दो श्लोकोंका अर्थ पं. दौलतरामजी अपने आदिपुराण वचनिका पर्व ४१ पत्र ७८६ में ऐसा लिखते है - 66 अर निमित्तशास्त्र, शकुनशास्त्र ताहीके भाषे अर ताहीका भारख्या ज्योतिषशास्त्र ये तीनं शास्त्र याहीके मरूपे सो सब शास्त्रनिके पाठी याही गुरु नानि आरापते भए ॥ १४७ ॥ " 1

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