Book Title: Jain Jyotish Author(s): Shankar P Randive Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur View full book textPage 7
________________ मध्यम नक्षत्र. उत्तरा रोहणी चित्रा मूलमाा तथैव च ॥ जलोत्तरा भादविश्वे प्रयाणे मध्यमाः स्मृताः ॥ १८ ॥ अर्थात्-रोहिणी, उत्तरा, मूल, चित्रा, आर्द्रा, पूर्वाषाढा, उत्तराभाद्रपदा, उत्तराषाढा ये नक्षत्र प्रस्थानमें मध्यम जानना. वर्ण्य नक्षत्रपूर्वात्रय मघा ज्येष्ठा भरणी जन्म कृत्तिका ॥ सा स्वाती विशाखा च गमने परिवर्जयेत् ॥ १९ ॥ एकविंशतयोऽग्नेस्तु भरण्याः सप्तनाडिकाः ॥ एकादश मघायाश्च त्रिपूर्वाणां च षोडश ॥ २० ॥ विशाखासार्पचित्राणां रौद्रस्वात्योश्चतुर्दश ॥ आधास्तु घटिकास्त्याज्या: शेषांशे गमनं शुभं ॥ २१ ॥ अर्थात्-तीनों पूर्वा, मघा, ज्येष्ठा, भरणी, जन्मनक्षत्र, कृत्तिका, भआश्लेषा, स्वाती, विशाखा ये नक्षत्र प्रयाणमें त्यागना; परंतु संकट समयमें तीनों पूर्वाकी १६ घडी, मघाकी ११ घडी, ज्येष्ठा संपूर्ण, भरणी ७ घडी, कृत्तिकाकी २१ घडी जन्मनक्षत्र संपूर्ण, आश्लेषा, विशाखा, चित्रा, स्वाती, आर्द्रा इन नक्षत्रकी आदिकी ११ घडी त्यागके प्रयाण करना। "ज्योति शास्त्रफलं पुराणगणकैरादेश इत्युच्यते " अर्थात-पौराणिक ज्योतिषीलोग कहते हैं कि-गणितज्योतिष तो केवल शुभाशुभ निर्णय ही के लिये है।" (सिद्धान्तशि० गोला० पृ० २२ श्लो० २६) लग्ने च क्रूरभवने क्रूरः पातालगो यदा ॥ • दशमे भवने क्रूरः कष्टं जीवति बालकः ॥ १॥Page Navigation
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