Book Title: Jain Jyotish Author(s): Shankar P Randive Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur View full book textPage 6
________________ होनेसे यह सर्वमान्य दिगंबरजैनाचार्यप्रणीत अंयोंके भाषारसे यह जैनज्योतिष ग्रंथ एकत्रित किया हैं। मिथ्यात्वी अन्यमती ग्रंथोंके आधारसे जो शुभाशुभ फल बतलाया गया है उसमें से कुछ वाक्य यहां उद्धृत किये जाते हैं।-- प्रयाणको शुभाशुभवार (ज्योतिषसार पृ• १७१ ) अर्के क्लेशमनर्थकं च गमने सोमे च बंधुप्रिये ॥ चांगारेऽनलतस्करज्वरभयं प्राप्नोति चाथै बुधे ॥ क्षेमारोग्यसुखं करोति च गुरौ लाभश्वशुक्रे शुभो । मंदे बंधनहानिरोगमरणान्युक्तानि गर्गादिमिः ॥ २२ ॥ अर्थात-रविवारको गमन करनेसे मार्ग में क्लेश और अनर्थ प्राप्त होता है. सोमवारको बंधु और प्रियदर्शन; मगलको अमि, चोर व ज्वरभय, बुधको द्रव्य लक्ष्मी प्राप्ति. गुरुवारको क्षेम मारोग्य, सुख प्राप्ति: शुक्रवारको लाभ शुभफलकी प्राप्ति; शनिवारको बंधन, हानि, रोग, मरण प्राप्त होता है। प्रयाणमें उक्त नक्षत्र (ज्योतिषसार पृ० १७३) हस्तेंदुमैत्रश्रवणाश्चितिष्यपोष्णश्रविष्ठाश्च पुनर्वसुश्च ॥ प्रोक्तानि धिष्ण्यानि नव प्रयाणे त्यक्त्वा त्रिपंचादिमसप्तताराः॥१७॥ अर्थात्-हस्त, मृगशीर्ष, अनुराधा, प्रवण, अश्विनी, पुष्य, रेवती, धनिष्ठा, पुनर्वसु ये नक्षत्र गमनमें उक्त हैं, परंतु ३, ५, १, ७ ये वारा गमनमें त्यागना.Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 175