Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 3
________________ जैनहितैषी । श्रीमत्परमम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ १ वाँ भाग } पौष, वीर नि० सं० २४४१ । { अंक ३ विविध प्रसंग | १ जैनसाहित्यकी समालोचना । जैन - साहित्यको अन्य साहित्योंकी बराबरीका आसन दिलाने के लिए- संसारकी दृष्टि उसकी ओर आकर्षित करनेके लिए जिस तरह उच्चश्रेणीके जैनसाहित्यको प्रकाशित करनेकी और उसकी आलोनात्मक चर्चा करनेकी आवश्यकता है उसी तरह जो निम्नश्रेणीका रद्दी और दुर्बल साहित्य है उसकी कड़ी समालोचना होनेकी भी ज़रूरत । हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारे साहित्यका एक अंश जितना ही उत्कृष्ट मार्मिक और विविधगुणसम्पन्न है उसी तरह उसका एक अंश --विशेष करके वह जो पिछले समय में भट्टारकों TERME Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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