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नाराचन्दने चतुर्दशीको व्रत किया था उसीका उद्यापन करनेके लिये पंडिन अक्षयगमने इस ग्रन्थकी रचना मं० १८०० के चैत्र महीने में पूर्ण की है।
२१वीं प्रशस्ति 'त्रिभंगीसारटोका' की है जिसके कर्ता सोमदेष सूरि हैं । इनका वंश वघरवाल था, पिताका नाम अभयदेव और माताका 'वैजेणी' था। सोमदेवने नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके त्रिभंगीसार ग्रन्थकी पूर्व बनी हुई कर्णाटकीय वृत्तिको लाटीय भाषामें बनाया था। ग्रन्थमें मोमदेवने 'गुणभद्रसूरि' का स्मरण किया है जिससे वे सोमदेवके गुरु जान पड़ते हैं।
'त्रिवर्णाचार' के कर्ता भ० मोमसनने भी अपने गुरु गुणभद्रसूरिका उल्लेख किया है जो मूल संघीय पुष्कर गक्छमें हुए हैं । भद्दारक सोमसेन ने अपना 'त्रिवर्णाचार' सं० १६६७में और 'पपुराण' नामक ग्रन्थकी रचना २० १६५६में की है। यदि यह सोमसेन और उक्त मोमदेव दोनों एक हों, जिसके होने की बहुत कुछ संभावना है, तो त्रिभंगीसारकी टीकाके कर्ताका समय विक्रमकी १७वीं शताब्दीका उत्तरार्ध होना चाहिये। क्योंकि दोनोंके गुरु एक ही गुणभद्र हैं या भिन्न-भिन्न यह विचारणीय है।
२२वीं प्रशस्ति 'यशोधचरित्र' की है जिसके कर्ता देशयती ब्रह्मश्रतमागर हैं, जिनका परिचय १०वीं प्रशस्तिमें दिया गया है।
२३ वीं प्रशस्ति 'भविष्यदत्तचरित्र' की है. जिसके कत्ता धिबुध श्रीधर हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत भाषामें रचा गया है । रचना प्रौद तथा अर्थगौरवको लिये हुए है । ग्रन्थमें कविने अपना कोई परिचय नहीं दिया
और न ग्रन्थका रचनाकाल ही देनेकी कृपा की । ग्रन्थमें गुरु परम्परा भी नहीं है । श्रीधर या विबुध श्रीधर नामक अनेक विद्वान विभिन्न समयोंमें हो गए हैं। उनमेंसे यह कौन हैं ? ऐसी स्थितिमें यह निश्चित करना कठिन है कि प्रस्तुत प्रन्यके कर्ता कवि श्रीधर कब हुए हैं और उनकी गुरु परम्परा
देखो अनेकान्त वर्ष किरण १२ पृष्ठ ४६२में प्रकाशित 'श्रीधर या विबुध श्रीधर नामका मेरा लेख ।
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