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सुभग सुलोचनाचरितकी रचना इन्होंने कब और कहां पर की, यह प्रशस्ति परसे कुछ ज्ञात नहीं होता। इनके अतिरिक्त इनकी दूसरी कृतियोंका पता और भी चलता है । जिनके नाम पवनदूत, पार्श्वपुराण, श्रीपाल - आख्यान, पाण्डवपुराण, और यशोधरचरित हैं । इनमें से पवनदृत्त एक खंडकाव्य है, जिसकी पद्य संख्या एक सौ एक है और जो हिन्दी अनुवादके साथ प्रकाशित भी हो चुका है । पार्श्वपुराण वि० सं० १६४०की कार्तिक शुक्ला पंचमीको 'बाल्हीक' नगर में रचा गया है १ । इसकी श्लोकसंख्या पन्द्रह सौ है । श्रीपाल श्राख्यान हिन्दी गुजराती - मिश्रित रचना है, जिसे उन्होंने धनजी सवाके अनुरोधसे संवत् १६५१ में रचा है२ । और पाण्डवपुराण नोधकनगर में वि० सं० १६५४ में पूर्ण हुआ है३ | तथा यशोधरचरित वि० सं० १६५७ में अलेश्वर ( भरोंच ) के चिन्तामणि मन्दिरमें रचा गया है । इनके सिवाय 'होलिका चरित्र' और 'सुलोचना
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२.
१. "शून्याब्दी रसाब्जांके वर्षे पते समुज्जले । कार्तिकमासे पari बाल्हीके नगरे मुद्रा ||३||” "संवत सोल इकावना वर्षे कीधो य परबंध जी । भवियन थिरमन करीने सुराज्यो नित्य संबंधजी ॥ " ३. "वेद-वाण षडब्जांके वर्षे तिषेध (?) मामिचन्द्र । araaraitsकारि पाण्डवानां प्रबन्धकः ॥ ६७" - तेरापंथी बडामंदिर जयपुर ।
४. ( अ ) " अंकलेश्वर सुग्रामे श्रीचिन्तामणिमन्दिरे । सप्तपंच रसाब्ज वर्षेऽकारि सुशास्त्रकम् ॥८१॥ " (आ) अंकलेश्वर ( भरोंच ) प्रसिद्ध एवं प्राचीन नगर हैं। यहां पहले कागज़ बनता था। अब नहीं बनता । विबुध श्रीधरके श्रुतावतारके अनुसार इस नगरको षट्खण्डागम ग्रन्थ रचे जाने और उन्हें लिवाकर ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीको संघ सहित भूतबलीने पूजा की थी। इससे इस नगरकी महत्ता और भी अधिक हो जाती है ।