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afts' नामके ग्रन्थोंका भी पता चला है। इनमें सुलोचना चरित्रकी प्रति ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन बम्बई में मौजूद है जिसके कर्ता वादिचन्द्र मुनीन्द्र बतलाये गये हैं । ऊपर जिस सुभगसुलोचनाचरितका उल्लेख किया गया है। उससे यह भिन्न नहीं जान पड़ता क्योंकि एकही ग्रन्थकार एक नामके दो ग्रन्थोंका निर्माण नहीं करता । अस्तुः मधके सामने न होने से उनके सम्बन्धमें विशेष विचार नहीं किया जा सका ।
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भ० वादिचन्द्र १७वीं शताब्दी के सुयोग्य विद्वान थे । इन्होंने गुजरातमें अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी कराई है। संभवतः यह ईडरकी गद्दी भट्टारक थे 1
१६वीं प्रशस्ति 'पोडशकारणव्रतोद्यापन' की और ४१वीं 'कर्णामृतपुराण' नामक ग्रन्थकी हैं, जिन दोनोंके कर्ता कवि केशवसेनसूरि हैं जो काष्ठासंघ भट्टारक रत्नभूषणके प्रशिष्य जयकीर्तिके पट्टधर शिष्य थे । यह कवि कृष्णदासके नामसे भी प्रसिद्ध थे । बाग्वर अथवा बागडदेशके दम्पति 'वीरा' और 'कान्तहर्ष' के पुत्र थे । तथा ब्रह्म मंगलके अग्रज ( ज्येष्ठ भ्राता ) थे । कर्णामृतपुराणकी प्रशस्तिमें कविने गंगासागर पर्यंत तथा दक्षिण देशमें, गुजरातमें, मालवा और मेवाड में अपने यश एवं प्रतिष्ठाका होना सूचित किया है। इससे केशवसेन उस समयके सुयोग्य विद्वान जान पड़ते हैं । इन्होंने अपना कर्णामृतपुराण सम्वत् १६८८ में मालवदेशकी 'भूतिलकभागापुरी' के पार्श्वनाथ जिनालय में माघमहीने में पूर्ण किया है। इस ग्रन्थकी रचनायें ब्रह्म वर्धमानने सहायता पहुँचाई थी । इससे ब्रह्म वर्धमान सम्भवतः इनके शिष्य प्रतीत होते हैं । षोडशकारण व्रतोद्यापनको इन्होंने विक्रम सम्वत् १६६४ के मार्गशिर शुक्ला सप्तमीके. दिन रामनगरमें बनाकर समाप्त किया है।
२०वीं प्रशस्ति 'चतुर्दशीव्रतोद्यापन' की है, जिसके कर्ता पं० अक्षयराम भ० विद्यानन्दीके शिष्य थे । भट्टारक विद्यानन्द १८वीं शताब्दी के विद्वान थे। जयपुरके राजा सवाई जयसिहके// प्रधानमन्त्री श्राचक