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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
. [चक्रवर्ती महापप
प्रकृति-परिवर्तनकारी इस आकस्मिक उत्पात का कारण जानने के लिए चक्रवर्ती महापद्म अन्तःपुर से बाहर घटनास्थल पर पाये । उन्होंने मनि विष्णुकुमार को वन्दन नमन किया और नतमस्तक हो वे उनसे अपने उपेक्षाजन्य अपराध के लिए पुनः पुनः क्षमाप्रार्थना करने लगे । संघ तथा नागरिकों ने पुनः पुनः क्षमायाचना करते हुए मुनि विष्णुकुमार से शान्त होने की प्रार्थना की । सामूहिक प्रार्थना को सुन मुनि शान्त हुए। उन्होंने वैक्रियजन्य अपने विराट स्वरूप का संवरण किया। सम शत्रुमित्र मुनिवर विष्णुकुमार ने नमचि की
ओर क्षमापूर्ण दृष्टिपात किया और संघ की रक्षा हेतु किये गये अपने कार्य का प्रायश्चित्त ले कर वे पुनः आत्मसाधना में लीन हो गये । तप-संयम की साधना से उन्होंने अन्त में प्राठों कर्मों को मूलतः विनष्ट कर अक्षय, अव्याबाध शाश्वत सुखधाम मोक्ष प्राप्त किया।
चक्रवर्ती महापदम ने भी २० हजार वर्ष की वय में श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने १० हजार वर्ष तक विशुद्ध संयम का पालन करते हुए घोर तपश्चरण द्वारा माठों कर्मों का अन्त कर मोक्ष प्राप्त किया।
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