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परि० और उनका वंश-वर्णन]
भगवान् श्री अरिष्टनेमि
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श्री अरिष्टनेमि के वशवर्णन के साथ-साथ श्रीकृष्ण के वंश का वर्णन भी 'हरिवंश' में वेदव्यास ने इस प्रकार किया है :
अश्मक्यां जनयामास, शूरं वै देवमीढुषः । महिष्यां जज्ञिरे शूराद्, भोज्यायां पुरुषा दश ।।१७।। वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुदुभिः ।
...................॥१८॥ देवभागस्ततो जज्ञे, तथा देवश्रवा पुनः । अनाधृष्टि कनवको, वत्सवानथ गृजिमः ।।२१।। श्यामः शमीको गण्डूषः, पंच चास्य वरांगनाः । पृथुकीति पृथा चैव, श्रुतदेवा श्रुतश्रवाः ।।२२।। राजाधिदेवी च तथा, पंचते वीरमातरः ।
...||२३॥
[हरिवंश, पर्व १, अ० ३४] वसुदेवाच्च देवक्यां, जज्ञे शौरि महायशाः ।
..........."||७॥
[हरिवंश, पर्व १, अ० ३५] अर्थात यदु के क्रोष्टा, क्रोष्टा के दूसरे पुत्र देवमीढ़ष के पुत्र शूर तथा शूर के वसुदेव अादि दश पुत्र तथा पृथुकीर्ति आदि पाँच पुत्रियां हुईं । वसुदेव की देवकी नाम की रानी से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
इस प्रकार वैदिक परम्परा के मान्य ग्रन्थ 'हरिवंश' में दिये गये यादववंश के वर्णन से भी यह सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण और श्री अरिष्टनेमि चचेरे भाई थे और दोनों के परदादा युधाजित् और देवमीढुष सहोदर थे।
दोतों परम्पराओं में अन्तर इतना ही है कि जैन परम्परा के साहित्य में अरिष्टनेमि के पिता समद्रविजय को वसुदेव का बड़ा सहोदर माना गया है। जब कि 'हरिवंश पुराण' में चित्रक और वसुदेव को चचेरे भाई माना है । संभव है कि चित्रक (श्रीमद्भागवत के अनुसार चित्ररथ) समुद्रविजय का ही अपर नाम रहा हो।
__ पर दोनों परम्पराओं में श्री अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण को चचेरे भाई मानने में कोई दो राय नहीं है।
दोनों परम्पराओं के नामों की असमानता लम्बे अतीत में हुए ईति, भीति, दुष्काल, अनेक घोर युद्ध, गृह-कलह, विदेशी आक्रमण आदि अनेक कारणों से हो सकती है।
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