Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 906
________________ ८४२ छठे कुलकर 'सीमंधर' ने अपने समय के कल्पवृक्षों के स्वामित्व के प्रश्न को लेकर लोगों में परस्पर होने वाले झगड़ों को शान्त कर वृक्षों को चिह्नित कर सीमाएं नियत कर दीं। 'विमल वाहन' नामक सातवें कुलकर अथवा मनु ने लोगों के गमनागमन प्रादि की समस्याओं का समाधान करने हेतु उन्हें हाथी प्रादि पशुप्रों को पालतू बनाकर उन पर सवारी करने की शिक्षा दी। पाठवें मनु 'चक्षुष्मान्' के समय में भोगभूमिज युगल अपनी बाल-युगल संतान को देखकर बड़े भयभीत होते । चक्षुष्मान उन्हें समझाते कि ये तुम्हारे पुत्र-पुत्री हैं, इनके पूर्ण चन्द्रोपम मुखों को देखो। मनु के इस उपदेश से वे स्पष्ट रूप से अपने बाल-युगल को देखते और बच्चों का मुंह देखते ही मृत्यु को प्राप्त हो विलीन हो जाते । नवम मनु 'यशस्वी' ने युगलों को अपनी सन्तान के नामकरण महोत्सव करने की शिक्षा दी। उस समय के युगल अपनी युगल-संतति का नामकरण-संस्कार कर थोड़े समय बाद कालकर विलीन हो जाते थे। दशम कुलकर 'अभिचन्द' ने कुलों की व्यवस्था करने के साथ-साथ बालकों के रुदन को रोकने, उन्हें खिलाने, बोलना सिखाने, पालन-पोषण करने प्रादि की युगलियों को शिक्षा दी। ये युगल थोड़े दिन बच्चों का पोषण कर मृत्यु को प्राप्त करते । ___छठे से दशवें ५ कुलकर 'हा' और 'मा' दोनों दण्ड-नीतियों का उपयोग करते थे। ग्यारहवें 'चन्द्राभ' नामक मनु के समय में प्रति शीत, तुषार और तीव्र वायु से दुखित हो भोग भूमिज मनुष्य तुषार से प्राच्छन्न चन्द्रादिक ज्योतिष समूह को भी नहीं देख पाने के कारण भयभीत हो गये। मनु 'चन्द्राभ' ने उन्हें समझाया कि अब भोग-युग की समाप्ति होने पर कर्म-युग निकट आ रहा है। यह शीत और तुषार सूर्य की किरणों से नष्ट होंगे। बारहवें कुलकर 'मरुदेव' के समय में बादल गड़गड़ाहट और बिजली की चमक के साथ बरसने लगे । कीचड़युक्त जल-प्रवाह वाली नदियां प्रवाहित होने लगी। उस समय का मानव-समाज इन सत्य और अभूतपूर्व घटनामों को देखकर बड़ा भय-भ्रान्त हुमा । 'मरुदेव' ने उन लोगों को काल-विभाग के सम्बन्ध में समझाते हुए कहा कि अब कर्म-भूमि (कर्मक्षेत्र) तुम्हारे सनिकट मा चुकी है। अतः निडर होकर कर्म करो। 'मरुदेव' ने नावों से नदियां पार करने, पहाड़ों पर सीढ़ियां बनाकर चढ़ने एवं वर्षा प्रादि से बचने के लिये छाता प्रादि रखने की शिक्षा दी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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