Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 923
________________ निरंभा - ५२० निशुंभा - ५२० निसढ़-४१० नील- ४३१ नीलयशा - ३४० नेम नारद - ३४०, ४०१ नेमिचन्द - ६१६, ६१७, ७४१, ७७४ नेमि, नेमिनाथ २१८, ३१४, ३६५, ३६६३७८, ३८१ - ३८३, ३६०, ३९२, ३६७-४०१, ४०८, ४१५, ४१७, ४२३, ४२५, ४२७, ४२६, ४८१, ४८७, ४६६, ५६५, ७४१ (प) पंडरंग - ७३६ पंथक - ४२३, ४२४ पतंजलि - ६४७, ७०६, ७२० पद्म - १६५, ७४१ पद्मकीर्ति - ४८१, ४८६, ४५६, ४६१, ४६३ पद्मनाभ - ३०, ४०१, ४०२, ४०३, ४०४, ४०५, ७४२ पद्मप्रभ - १६६, १६७, १६६ पद्मभद्र- ७४१ पद्मरथ - २२४ पद्मश्री - ३४० पद्मसेन- २२१, ७४१ पद्मा - ३४०, ४७६, ४६६, ५२१ पद्मावती - २८, ३४०, ४६२, ५२४. ७४२, ७४४, ७४७ पद्मोत्तर - २०८, २१७, ४७६ - पनुगानय - ५२७ पयोद - ४३१ पराख्य-७४ परासर- ४०७ परिव्वायग - ७३६ परीक्षित - ४०६ पर्वत - ३१८, ३२०, ३२१, ३२२, ३२३ पल्लीपति - ३१३ पाइथागोरस - ५०५, ५३३ Jain Education International पाई, एम० गोविन्द - ७८० पाणिनी - ६४७, ७२०, ७२५, ७२६ पाण्डव - ४१३, ४१४, ४२६, ४२७ पाण्डु - ३३७.३३६, ४०६ पातंजलि - ६४७ पार्श्वनाथ - ४२८, ४३८, ४७५-४७८, ४८०, ४८१, ४५२, ४८३, ४८४-५१०, ५१३, ५१४, ५१६, ५१७, ५१६, ५२१, ५२२ - ५३१, ५३३, ५३५, ५६५, ५६६, ५८८, ५६३, ५१८, ६१७, ६५०, ६५१, ६६६, ७०८, ७१०, ७१३, ७३१, ७३५, ७३६, ७३६ पारासर- ३६६ पालक - ६८६, ७६८, ७८१ पालित - ६३३ पिंगल - ६३० पितृदत्त-: .3 पितृसेन कृष्णा - ६३३ पिप्पलाद - ५०३ पिशल - ६१७ पिहद्धय - ३२६ पिहिताश्रव - १९६, ५०६ - ५६० पीठ- १३ पुंडरीक-७४ पुण्यपाल-६७७, ६७८ पुण्य मानी - ४५२, ४५४ पुण्यविजय- ४५ 'पुद्गल - ६२४ पुनर्वसु- २०६ पुरुरव:- ५४० पुरुषसिंह - २२६, ५८८ पुरुषसेन - ४२६, ६२६ पुष्प - २०५ पुष्पचूल - ४४०, ४४१, ४४६ पुष्पचूलके - ४३८, ४५३ पुष्प चूला - ५०१, ५१७, ५१८, ५१६ पुष्पचूलिका- ५१६ ८५६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954