Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 809
________________ अजातशत्रु कूरिणक] भगवान् महावीर ७४५ पुरिसा दिण्णभत्तिभत्तवेपणा भगवरो पवित्तिवाउमा भगवो तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेति ।" [ौपपातिक सूत्र, सूत्र ८] सत्र के इस पाठ से स्पष्ट है कि कणिक ने भगवान महावीर की दैनिक विहारचर्या आदि की सूचनाएं प्रतिदिन प्राप्त करते रहने की दृष्टि से एक कुशल अधिकारी के अधीन अलग स्वतंत्र रूप से एक विभाग ही खोल रखा था और इस पर वह पर्याप्त धनराशि व्यय करता था। एक समय भगवान महावीर का चम्पा नगरी के उपवन में शुभागमन हमा । प्रवत्ति-वार्ता निवेदक (संवाददाता) से जब भंभसार (बिम्बसार) के पुत्र कूणिक ने यह शुभ समाचार सुना तो वह अत्यन्त हर्षित हुआ । उसके नयन-नीरज खिल उठे । प्रसन्नता की प्रभा से उसका मुखमंडल प्रदीप्त हो गया। वह शीघ्रतापूर्वक राज्य सिंहासन से उठा । उसने पादुकाएं खोली और खङ्ग, छत्र, मुकुट, उपानत् एवं चामर रूप सभी राज्यचिह्न उतार दिये। वह एक साटिक उत्तरासंग किये अंजलिबद्ध होकर भगवान महावीर के पधारने की दिशा में सात-पाठ कदम आगे गया। उसने बायें पैर को संकुचित कर, दायें पैर को मोड़ कर धरती पर रखा। फिर थोड़ा ऊपर उठकर हाथ जोड़, अंजलि को मस्तक पर लगाकर "रणमोत्थरणं" से अभिवादन करते हुए वह बोला-"तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर, जो सिद्ध गति के अभिलाषी और मेरे धर्माचार्य तथा उपदेशक हैं, उन्हें मेरा नमस्कार हो। मैं तत्र विराजित प्रभु को यहीं से वन्दन करता हूं और वे वहीं से मुझे देखते हैं।" इस प्रकार श्रद्धा सहित वन्दन कर राजा पुन: सिंहासनारूढ़ हुमा । उसने संवाददाता को एक लाख आठ हजार रजत मुद्रामों का प्रीतिदान दिया और कहा-"जब भगवान महावीर चम्पा के पूर्णभद्र चैत्य में पधारें तो मुझे पुनः सूचना देना।" प्रातःकाल जब भगवान नगरी में पधारे और संवाददाता ने करिणक को यह हर्षवर्द्धक समाचार सुनाया तो कूणिक ने हर्षातिरेक से तत्काल साढ़े बारह लाख रजत-मुद्राओं का प्रीतिदान किया । तदनन्तर करिणक ने अपने नगर में घोषणा करवा कर नागरिकों को प्रभु के शुभागमन के सुसंवाद से अवगत कराया और अपने समस्त पन्तःपुर, परिजन, पुरजन, अधिकारी-वर्ग एवं चतुरंगिणी सेना के साथ प्रभु-दर्शन के लिये प्रस्थान किया। १ उववाई और महावस्तु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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