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व्यूह रचना]
भगवान् श्री अरिष्टनेमि
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अपने सेनापति हिरण्यनाभ के मारे जाते ही जरासन्ध की सेना में हाहाकार और भगदड़ मच गई एवं यादव-सेना के जयघोषों से नभमण्डल प्रतिध्वनित हो उठा।
उस समय अंशुमाली अस्ताचल की ओट में अस्त हो चुके थे, अतः दोनों सेनाएँ अपने-अपने शिविरों की ओर लौट गई।
जरासंध ने अपने सेनानायकों और मन्त्रियों से मंत्रणा कर सेनापति के स्थान पर शिशुपाल को अभिषिक्त किया ।
दूसरे दिन भी यादव-सेना ने गरुड़-व्यूह और जरासन्ध की सेना ने चक्रव्यूह की रचना की और दोनों सेनाएं रणक्षेत्र में आमने-सामने आ डटीं। रणवाद्यों और शंख-ध्वनि के साथ ही दोनों सेनाएं क्रुद्ध हो भीषण हुंकार करती हुई रणक्षेत्र में जूझने लगीं।
___ क्रुद्ध जरासन्ध धनुष की प्रत्यंचा से टंकार करता हुआ बलराम एवं कृष्ण की ओर बढ़ा । जरासन्ध-पुत्र यवराज यवन भी बड़े वेग से अऋरादि वसुदेव के पुत्रों पर शरवर्षा करता हुआ आगे बढ़ा। देखते ही देखते संग्राम बड़ा वीभत्स रूप धारण कर गया ।
सारण कुमार ने तलवार के एक ही प्रहार से यवन कुमार का सिर काट गिराया । अपने पुत्र की मृत्यु से क्रुद्ध हो जरासन्ध यादव-सेना का भीषण रूप से संहार करने लगा । उसने बलराम के प्रानन्द प्रादि दश पुत्रों को बलि के बकरों की तरह निर्दयतापूर्वक काट डाला ।
जरासन्ध द्वाग दश यदुकुमारों और अनेक योद्धाओं का संहार होते देख कर यादवों की सेना के पैर उखड गये । खिल-खिलाकर अट्टहास करते हुए शिशुपाल ने कृष्ण से कहा -- "अरे कृष्ण ! यह गोकुल नहीं है, रणक्षेत्र है।"
शिशुपाल से कृष्ण ने कहा-“शिशुपाल ! अभी तू भी उनके पीछे-पीछे ही जाने वाला है।"
कृष्ण का यह वाक्य शिशुपाल के हृदय में तीर की तरह चुभ गया और उसने कृष्ण पर अनेक दिव्यास्त्रों की वर्षा के साथ-साथ गालियों की भी वर्षा प्रारम्भ कर दी।
कृष्ण ने शिशुपाल के धनुष, कवच और रथ की धज्जियां उड़ा दीं । जब शिशुपाल तलवार का प्रहार करने के लिए कृष्ण की ओर लपका तो कृष्ण ने उसके मुकुट, तलवार और सिर को काट कर पृथ्वी पर गिरा दिया।
___ अपने सेनापति शिशुपाल का अपने ही समक्ष वध होते देख कर जरासंध अत्यन्त क्रुद्ध हो विक्रान्त-काल की तरह अपने पुत्रों और राजाओं के साथ कृष्ण
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