Book Title: Jain Dharm Vikas Book 02 Ank 08 09 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 6
________________ જેનધર્મ વિકાસ - - ॥शीलकुलकम् ॥ रचयिताः-जैनाचार्य श्री विजयपद्मसूरिजी. (itis ५४ २०८ था अनुसंधान ) ॥संततिलकावृत्तम् ॥ इत्थीमहाइ ण णिएज वियारभावा । तप्फासदंसणवसेण वि होजराओ॥ भग्गम्मि दिद्विगमणे सहसा विहे।चिचक्खिसंवरण मुण्णइयं पमोया ॥६९॥ एगग्गया नियमणस्स ण काकाले । कज्ज गणारइसुहे सुविणम्मि जाए॥ दोसावहेण विहिणा पकरिज सुद्धिं । धारिज सीलहर भव्वयणाण भावं ॥७०॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ इत्थीए सह वत्ता-वजिजा चित्तदसणं तीए ॥ इय सीलव्वयलरका-विउलं कित्तिं लहंति सया ॥७१॥ जिणरसिकय जिणपाला-दुहपत्ता रयणदीवदेवीए ॥ सायरमसे लद्धं-सरणं दोहिं पि जख्कस्स ॥७२॥ जक्सवयणसीकारा-जिणपालो तेण पाविओ गेहं ॥ तन्वयण तजणाओ-मच्चुं जिणरस्किओ पत्तो ॥७३॥ घडणा सिरिछठेंगे-इमस्स वुत्ता महेइ जे भोए । जिणरख्कियसरिसा ते-भमंति रुहे भवसमुहे ॥७॥ संचत्तमोगसंगा-जिणपालनिहा लहेइ मुत्ति पयं ॥ सेलगपिद्विसमाणं-जिणवइवयणं मुणेअव्वं ॥५॥ जलही भवो सठाणं-णिव्वाणं दीवदेवया णारी ॥ जिणरकिया पसत्ता-जिणपाला सुग्गहिय सीला ॥७॥ तावसमिई पुराणे-कंखाए तावसीइ संदिट्ठा॥ अढगण्यरणमजले--कुसीलपरिणाम निथारो 199) बेइंदियजीवाणं-लक हत्तुम्भवो य जोणीए ॥ तम्मरणं मेहुणओ-नलीसलाया निदरिसणओ ॥८॥Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52