Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 07 08 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 6
________________ ३०० જૈન ધર્મ વિકાસં. - ॥ ॥ आदीनाथ चरित्र पद्य ।।. ( जैनाचार्य जयसिंहसूरी तरफथी मळेलु ) ___(Iris Y४ १७७ थी भनुमान) याद पड़ी गुरु राजकृपाला, वे प्रासुक अन्न लेवन वाला । कंदमूल फल छूवत नाही, किम दिन बीतत कही न जाही । अहाःमूर्खमति मंद गंवारा, गफलतमें भूला इकरारा । कभी न जा कर दर्शन कीना, बहु दिन गये आज गुरु चीना ॥ अब कैसे गुरु मुखहिं दिखाऊं, फेर चरण शरणागत जाऊ । अस कहि साहु गुरुहिं ढिग आवा, वंदन कर अति विनय सुनावा।। नाथ क्षमिय गुण ज्ञान प्रवीना, में मिथ्या गर्जन अति कीना। गर्जन वर्षन दुर्लभ देवा, में प्रमाद वस बिसरी सेवा ।। में मूरख अज्ञान वस, दर्शन वंदन त्याग। मोक्षमार्म त्याग न किया, अहो मंद मम भाग ॥ सार्थवाह करुणा सुनी, बोले श्री मुनिराज । तुम उपकारी जीव हो, क्यों करते हो लाज ॥ यह सुन सेठ होत अति दीना, जय जय जय मुनि ज्ञान प्रविना । अवगुण त्यामसद्गुण मुज भाखा, पर प्रमाद कारण नत माथा ॥ गोचरिलेन भेजिये साधू, कलपे अन्न बेरा वहुं साधू । धर्मघोष मुनि शिष्य पठावा, मुनिवर शिष्य साहु घर आवा॥ धर्मलाभ सुन साह हर्षावा, हषित हो चोकामहि जावा। कछुनमिला चोका के माही, तब साहू मन अति पछताही । टूडत ही घृत पात्र दिखाका, देख साहू मन अति हर्षावा । घृत वेराउ श्री मुनि सजा, आवृत मुनि डिग पूछन काजा॥ नाथ शुद्ध घर माहीं, और न कछु मुझ दीखत नाही। हुकम होय बहु स्वामी, करिये नाथ मुझे अनुगामी ॥, बोले मुनि खुश होय बेराओ, अचिंतन हमे कलपे लाओ। ... शुद्ध हृदय बेरावन लामा, तबहिं साहू कर्म सब भागा॥Page Navigation
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